बद्रीनाथ धाम की खास परंपरा (सौ. सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: देश की सबसे बड़ी तीर्थयात्राओं में से एक उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की शुरूआत 30 अप्रैल से होने जा रही है। चार धाम यात्रा में भक्त यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा करके दर्शन करते है। यहां पर सभी चार धामों की अपनी अलग-अलग परंपराएं और धार्मिक मान्यताएं है। इन मान्यताओं के बारे में कम लोग ही जानते है।
आज हम आपको बद्रीनाथ धाम की खास परंपरा के बारे में जानकारी दे रहे है जो बेहद खास और महत्व रखती है। ऐसे ही एक यात्रा और रीति रिवाज और परंपरा है गाडू घड़ा तेल कलश । कहते है कि, भगवान बदरी विशाल का प्रथम अभिषेक तिलों के तेल से होगा।
यहां पर बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने से पहले ही गाड़ू घड़ा कलश यात्रा की शुरूआत हो जाती है। इस यात्रा में सबसे पहले महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह की उपस्थिति में सुहागिन महिलाओं ने राजमहल में तिलों का तेल पिरोया जाता है। पवित्र तिलों के तेल को भगवान बदरीविशाल के अभिषेक के लिए कपाट खुलने से पूर्व डिमरी पंचायत द्वारा श्री बदरीनाथ धाम पहुंचाया जाता है। बताया जाता है कि, इस कलश यात्रा का नाता राजघरानों से है। यहां पर परंपरा के अनुसार, महारानी राज्यलक्ष्मी शाह की मौजूदगी में राजपुरोहित विधि-विधान के साथ पहले पूजा संपन्न करवाते है।
फिर सुहागिन महिलाओं द्वारा पीले कपड़े पहनकर परंपरागत तरीकों से तिलों का तेल पिरोया जाता है। तेल पिरोने के बाद ढोल-दमाऊ व मसकबीन की मधुर लहरियों के बीच भगवान बदरी विशाल का स्तुतिगान हुआ और तेल को कलश में भरकर उसे कपड़े से ढका दिया गया।
यहां पर तेल पिरोने की परंपरा में भगवान बद्रीनाथ का सबसे पहले नरेंद्रनगर राजमहल में पिरोये गए तिलों के तेल से ही पहला अभिषेक होता है। इसके बाद स्नान-पूजन की क्रियाएं संपन्न होती हैं। परंपरा के अनुसार टिहरी रियासत के राजाओं को बोलांदा बदरी (बोलने वाले बदरी) कहा जाता था। यही वजह है कि बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि एवं मुहूर्त राजा की कुंडली के हिसाब से तय होते हैं। बताया जाता है कि, तेल दर्शन करने के लिए डिम्मर सहित आसपास के ग्रामीण इस गाड़ू घड़ा तेल कलश यात्रा में शामिल होते है और कलश का दीदार करते है।
धर्म की खबरें जानने के लिए क्लिक करें…
यहां पर फूल मालाओं से सजे कलश के साथ ही इस मौके पर भगवान बदरी विशाल का प्रथम अभिषेक तिलों के तेल से होगा। यात्रियों के पहुंचने पर पूरा क्षेत्र भगवान बदरीविशाल के जयकारों से गूंज उठता है।