आखिर दशहरे पर क्यों खाई जाती है जलेबी (सौ.सोशल मीडिया)
Dussehra Tradition: दशहरा हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत और धर्म की विजय का प्रतीक के रूप में पूरे भारत में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। बता दें, दशहरा का पावन पर्व सिर्फ सनातन परंपरा से जुड़ी आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की लोक संस्कृति और परंपरा का भी अटूट हिस्सा है। यह पर्व भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। इनमें से एक खास परंपरा है दशहरे पर जलेबी खाने की।
क्या आपने इस बात पर गौर किया है आखिर इस दिन जलेबी क्यों खाई जाती है? इसके पीछे सिर्फ स्वाद का ही कारण नहीं, बल्कि गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता भी जुड़ी हुई है। ऐसे में आइए जान लेते हैं दशहरे पर जलेबी खाने की क्यों परंपरा है।
धार्मिक ग्रंथों और लोककथाओं में जलेबी को शशकुली कहा गया है। मान्यता है कि यह व्यंजन यानी जलेबी भगवान राम को अति प्रिय था। जब श्रीराम ने रावण का वध कर विजय प्राप्त की, तो अयोध्या लौटने पर उनकी इस जीत का जश्न मनाया गया। इस अवसर पर उन्हें प्रिय शशकुली यानी आज की जलेबी खिलाई गई। तभी से विजयादशमी पर जलेबी खाने की परंपरा जुड़ी हुई मानी जाती है। इसलिए इस दिन जलेबी खाने की परंपरा है।
जानकार बताते है कि जलेबी गोल आकार में बनाई जाती है, जो जीवन के चक्र और अनंतता का प्रतीक है। यह विजय के बाद मिलने वाली मिठास और समृद्धि का संकेत भी है। जब लोग दशहरे पर जलेबी खाते हैं तो उसका भाव यह होता है कि बुराई पर जीत के बाद जीवन में मिठास, सौभाग्य और सुख-समृद्धि बनी रहे।
कहा जाता है कि, नवरात्रि के नौ दिनों तक भक्त साधना और संयम का पालन करते हैं। विजयादशमी यानी दशहरा उस तपस्या के समापन का प्रतीक है। इसलिए इस दिन मीठा खाकर खुशी और आनंद का उत्सव मनाया जाता है। जलेबी इस अवसर की सबसे खास और लोकप्रिय मिठाई बन गई।
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दशहरे पर जलेबी खाना केवल स्वाद या परंपरा भर नहीं है, बल्कि यह भगवान राम की विजय, जीवन में मिठास और ऊर्जा का प्रतीक भी है। यह परंपरा आज भी लोगों को याद दिलाती है कि जैसे श्रीराम ने बुराई पर विजय पाई, वैसे ही हमें भी अपने जीवन की नकारात्मकताओं को हराकर सुख और मिठास की ओर बढ़ना चाहिए।