सांझी माता(सो.सोशल मीडिया)
Shardiya Navratri 2024: हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का महापर्व बहुत ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मां दुर्गा को समर्पित यह पर्व पूरे नौ दिनों तक चलता हैं। आपको बता दें, इस दौरान देशभर के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न प्रकार से मां दुर्गा की पूजा-अराधना की जाती हैं।
वहीं, कुछ क्षेत्रों में शारदीय नवरात्रि के दौरान घरों में सांझी माता भी बनाई जाती हैं। आप में से बहुत से लोग इससे अवगत होंगे। लेकिन फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो शायद सांझी माता व उनके पूजन के बारे में जानकारी हो। ऐसे में आज हम आपको सांझी माता से जुड़ी अनूठी परंपरा के बारे में बताएंगे। तो चलिए जानते है इस बारे मे-
यहां होती है सांझी माता की पूजा
शारदीय नवरात्रि के दौरान मनाया जाने वाला सांझी पर्व एक लोकपर्व है, जिसे मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और गुजरात जैसे राज्यों में बेहद मनाया जाता है। हालांकि, अब दिल्ली व एनसीआर में भी लोग इस पर्व को मनाने लगे ।
ऐसे बनाई जाती हैं सांझी
सांझी की पूजा करना जितना खास है उतना ही इसे बनाना भी है। गांवों में अक्सर लोग मिट्टी से सांझी माता की मूर्ति बनाते हैं। साथ ही कुछ सितारे भी बनाए जाते है। अंत में सांझी माता को चूड़ी, बिंदी व श्रृंगार किया जाता है।
कुंवारी लड़कियां करती हैं सांझी माता की पूजा
सांझी पर्व मुख्यतौर पर महिलाओं व कन्याओं का है। वे मिलकर सांझी बनाती हैं और फिर 9 दिनों तक नियमानुसार उनकी पूजा-अर्चना करती है। लड़कियां शाम के समय सांझी माता की आरती व भजन गाती है और फिर उन्हें भोग लगाती है। सभी लड़कियां मिलकर एक-दूसरे के घर जाकर सांझी पूजती है।
इस दिन होता है सांझी माता का विसर्जन
शारदीय नवरात्रि में 9 दिनों की पूजा के बाद दशहरा के दिन सांझी माता का विसर्जन किया जाता है। जिस दिन विसर्जन किया जाता है उससे पहले सांझी माता की पूजा की जाती है।
सांझी माता की कथा –
प्रचलित मान्यता के अनुसार, सांझी को कहीं मां दुर्गा या पार्वती माता का प्रतीक माना जाता है, कहीं पर उन्हें विवाहित ब्राह्मणी माना जाता है। तो कहीं उन्हें अछूत जाति की पुत्री माना जाता है। एक कहानी ये भी है कि सांझी माता की शादी के तुरंत बाद ही मौत हो गई थी। प्रचलित मान्यता के अनुसार सांझी बाई षोडशी थी। सांझी का 1 दिन 1 वर्ष के बराबर होता है।
16 दिन के बाद कुंवारी कन्या को पूर्ण यौवन प्राप्त करती है और अपने ससुराल चली जाती है। सांझी माता का 16वां दिन विसर्जन किया जाता है। इस दिन वह पितृ मूल्य केवल उसी समाज में प्रचलित होता है, जिसे अछूत माना जाता है। प्रचलित मान्यता के अनुसार, उनका व्यक्तित्व बेहद ही चमत्कारी है। जो अपने पिता के घर को छोड़कर अपने पति के घर पर जाती है। कहते हैं कि जो लड़कियां सांझी की पूरे विश्वास के साथ विदा करती हैं उन्हें एक अच्छा वर मिलता है और वे जीवन भर खुश रहती हैं।