ये रहने वाला है दिवाली का पूजा मुहूर्त (सौ.सोशल मीडिया)
Laxmi Puja Samagri List: रौशनी और उमंगों का महापर्व दिवाली इस बार 20 अक्तूबर 2025 को मनाया जा रहा है। अगर दिवाली मनाने की बात करें तो यह पर्व मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के 14 वर्षों के वनवास से अयोध्या लौटने के खुशी में मनाया जाता है।
तब अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। तभी से यह पर्व दीपों का उत्सव दिवाली के रूप में मनाया जाने लगा। आपको बता दें, यह न केवल रौशनी का पर्व है बल्कि दिवाली प्रेम, आनंद और नई शुरुआत का प्रतीक भी होती हैं।
मान्यता है कि यह दिन सभी के जीवन में नई उम्मीदें, सकारात्मक ऊर्जा और प्रकाश को लेकर आता है। इसलिए इस दिन घरों से लेकर मंदिरों में धन की देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधि-विधानपूर्वक पूजा की जाती है।
इससे घर में सुख-समृद्धि, सौभाग्य, प्रेम तथा यश-वैभव बना रहता है। हालांकि, लक्ष्मी पूजन हमेशा संपूर्ण विधि से करना चाहिए। इससे पूजा का पूर्ण फल मिलता है। ऐसे में आइए लक्ष्मी पूजन की विधि और महत्व को जानते हैं।
आपको बता दें, कार्तिक अमावस्या की तिथि 20 अक्तूबर को दोपहर 3 बजकर 44 मिनट से प्रारंभ होगी।
तिथि का समापन अगले दिन यानी 21 अक्तूबर को शाम 5 बजकर 54 मिनट पर है।
20 अक्तूबर 2025 को दिवाली का पर्व मान्य होगा।
इस बार दिवाली को शाम 7 बजकर 8 मिनट से रात 8 बजकर 18 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा। वहीं निशिता काल मुहूर्त रात 11:41 से 12:31 बजे तक रहने वाला है।
ज्योतिषियों के मुताबिक 20 अक्तूबर 2025 को दिवाली पर प्रदोष काल शाम 05 बजकर 36 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 07 मिनट तक रहेगा। इसमें स्थिर लग्न वृष का समावेश 06 बजकर 59 मिनट से लेकर 08 बजकर 56 मिनट तक रहेगा।
पूजा के लिए मां लक्ष्मी और गणेश जी की प्रतिमा और कलावा अवश्य रखें।
भगवानों के वस्त्र और शहद शामिल करें।
गंगाजल, फूल, फूल माला, सिंदूर और पंचामृत।
बताशे, इत्र, चौकी और लाल वस्त्र के साथ कलश।
शंख, आसन, थाली, चांदी का सिक्का।
कमल का फूल और हवन कुंड।
हवन सामग्री, आम के पत्ते और प्रसाद
रोली, कुमकुम, अक्षत (चावल), पान।
इस दौरान सुपारी, नारियल और मिट्टी के दीए संग रुई भी शामिल करें।
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ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नमः
ॐ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा
ॐ श्री ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नमः
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च। भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः