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चंद्रमा की एक गलती का परिणाम है धरती पर महाकुंभ, जानिए पौराणिक कथा

13 जनवरी से महाकुंभ की शुरुआत होने जा रही है। यह लोगों की आस्था का एक प्रमुख केंद्र बना हुआ है। दंतकथाओं की मानें तो, चंद्रमा की एक गलती की वजह से धरती पर कुंभ मेले की शुरुआत हुई।

  • By सीमा कुमारी
Updated On: Jan 07, 2025 | 04:29 PM

चंद्रमा से जुड़ी महाकुंभ की कहानी,(सौ.सोशल मीडिया)

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Mahakumbh 2025: महाकुंभ मेला जल्द ही शुरू होने वाला हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में से एक है जो साल 2025 में 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में आयोजित होगा। महाकुंभ के दौरान देश-विदेश के हर कोने से लोग आस्था की डुबकी संगम में लगाने आते हैं।

हिंदू ग्रंथों के अनुसार इसका आयोजन लगभग 2 हजार सालों से हो रहा है।महाकुंभ में त्रिवेणी यानी गंगा, यमुना और सरस्वती मिलन के संगम तट पर स्नान स्नान किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ में गंगा स्नान करने अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

आपको बता दें, कुंभ में स्नान करने से आपका आध्यात्मिक विकास भी होता है और आपके पाप भी धुल जाते हैं। हालांकि, बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि, चंद्र देव की एक गलती के कारण आज धरती पर कुंभ का मेला लगता है। अगर दूसरे अर्थों में कहें तो धरतीवासियों के लिए चंद्रदेव की गलती वरदान बन गई। आइए यहां जान लेते हैं, चंद्रमा से जुड़ी महाकुंभ की इस रोचक कहानी के बारे में।

जानिए महाकुंभ का पौराणिक आधार

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी है। ये बात तो हम सभी जानते हैं कि देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से कई बहुमूल्य चीजें निकलीं थीं। इन्हीं में से एक अमृत कलश भी था।

तब अमृत की बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं। यही कारण है कि इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। ‘कुंभ’ शब्द स्वयं अमृत कलश का प्रतीक है, जो अमरता और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।

जयंत के साथ गए देव ये देवता

जब जयंत अमृत कलश को असुरों से लेने गया था तब सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति और शनि भी जयंत के साथ गए थे। हर देवता को एक जिम्मेदारी दी गयी थी।

सूर्य को अमृत कलश को टूटने से बचाना था।

चंद्रमा को जिम्मेदारी दी गई थी कि अमृत का कलश गलती से भी छलके ना।

देव गुरु बृहस्पति को राक्षसों को रोकने के लिए भेजा गया था।

वहीं शनि देव को जयंत पर नजर रखने की जिम्मेदारी दी गई थी कि कहीं वो सारा अमृत स्वयं न पी जाए।

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चंद्रमा से हुई थी ये गलती

मान्यताओं के अनुसार, जब देवता अमृत कलश स्वर्ग ला रहे थे तो एक गलती चंद्रमा से हो गई थी। चंद्रमा को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि अमृत का कलश छलके ना, लेकिन एक छोटी सी भूल के कारण अमृत कलश की चार बूंदें कलश से बाहर निकल गईं। ये चार बूंदें धरती पर चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरीं। इन चारों स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरने से ये चार स्थान पवित्र हो गए। तब से यहां स्नान करने को अत्यंत शुभ माना जाने लगा।

अमृत कलश को लाने की जिम्मेदारी सूर्य, चंद्रमा, गुरु और शनि को दी गई थी। इसलिए आज भी इन ग्रहों की विशेष स्थिति को देखकर ही कुंभ का आयोजन किया जाता है। महाकु्ंभ में स्नान करने वाले व्यक्ति के कई जन्मों के पाप कर्म भी धुल जाते हैं। साथ ही, कुंभ में स्नान करने से आध्यात्मिक रूप से आप उन्नति पाते हैं।

 

This interesting story of mahakumbh related to the moon

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Published On: Jan 07, 2025 | 04:29 PM

Topics:  

  • Mahakumbh 2025

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