क्यों है गोदान इतना महत्व (सौ.सोशल मीडिया)
Pitru paksha daan: आज 16 सितंबर 2025 को पितृ पक्ष की नौमी तिथि है, जो आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में आती है। पितृ पक्ष 7 सितंबर 2025 को पूर्णिमा से शुरू हुआ था और 21 सितंबर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होगा। हिन्दू मत के अनुसार, पितृपक्ष केवल श्राद्ध और तर्पण का काल नहीं है, यह दान-पुण्य के कार्यों के लिए भी सबसे शुभ समय है जो दिवंगत पूर्वजों और दाता दोनों को आध्यात्मिक लाभ पहुँचा सकता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार, इस पखवाड़े में गोदान करने से पितृ मोक्ष की प्राप्ति होती है और दाता को स्वर्ग का मार्ग भी मिलता है। जैसा कि आप जानते है कि हिंदू धर्म में, गोदान को दान का सर्वोच्च कार्य माना जाता है, जिसमें करुणा, भक्ति और धर्म का समावेश होता है, जो इसे सामान्य दान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण बनाता है। ऐसे में आइए जानते है किस चीज का दान मोक्ष और आपको स्वर्ग की सीढ़ी पहुंचा सकती है।
गरुड़ पुराण में स्पष्ट लिखा है कि पितरों की तृप्ति के लिए भोजन, जल और तिल का दान तो आवश्यक है, लेकिन गोदान सर्वोच्च दान माना गया है। यदि कोई व्यक्ति पितृपक्ष में गोदान करता है, तो उसके पितर सीधे यमलोक से मुक्ति पाकर देवलोक की ओर प्रस्थान कर सकते है।
शास्त्रों में गोदान को स्वर्ग की सीढ़ी कहा गया है, यानी यह पुण्य केवल पितरों को ही नहीं बल्कि दाता को भी पुण्यलोक और स्वर्ग की ओर अग्रसर करता है।
ज्योतिषयों के अनुसार, गोदान केवल भौतिक दान नहीं बल्कि जीव दया और धर्म की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है। पुराणों में उल्लेख है कि गाय को सप्तलोक की द्वारपाल कहा गया है। गाय के प्रत्येक अंग में देवताओं और तीर्थों का वास माना जाता है। जब कोई व्यक्ति गाय का दान करता है, तो वह मानो सभी देवताओं को प्रसन्न कर देता है। इसलिए सनातन धर्म में गोदान को सर्वोच्च दान माना गया है।
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पितृपक्ष में सब लोग अन्न-जल का तर्पण करते हैं, लेकिन गरुड़ पुराण कहता है कि यदि इस काल में गोदान किया जाए तो यह न केवल पितरों के लिए मोक्ष का द्वार खोल देता है बल्कि स्वयं को भी स्वर्ग की ओर अग्रसर कर देता है। यही कारण है कि इसे सनातन धर्म में सर्वश्रेष्ठ दान कहा गया है।