छठ पूजा का श्रीकृष्ण से भी है कनेक्शन
Chhath Pooja 2024: लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा 05 नवंबर से नहाय-खाय के साथ शुरुआत हो चुकी है। छठ पूजा बिहार का एक प्रमुख और पारंपरिक त्योहार है, जिसे हर साल पूरी भक्ति, श्रद्धा, और समर्पण के साथ मनाया जाता है। यह पूजा सूर्य देव और छठी मइया को समर्पित है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, सूर्य देवता को समर्पित इस पूजा में छठी मइया की आराधना भी की जाती है, जो संतान और परिवार के सुख-समृद्धि की कामना के लिए की जाती है।
ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा करने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं और पारिवारिक जीवन में सुख-शांति का वास होता है। आइए जानते है छठ पूजा से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें-
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छठ पूजा का समय और तिथियां
छठ पूजा कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है, जो अक्टूबर-नवंबर के महीने में आती है। यह चार दिनों तक चलता है और नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और प्रातःकालीन अर्घ्य इन चार मुख्य चरणों में होता है।
छठ पूजा के चार चरण
नहाय-खाय महापर्व छठ के पहले दिन व्रती (छठ पूजा करने वाले) पवित्र स्नान करते हैं और सात्विक भोजन का सेवन करते है। इस नहाय-खाय के साथ ही व्रत का आरंभ होता है। इस दिन व्रती चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल का प्रसाद ग्रहण करते है। इस साल नहाय-खाय 5 नवंबर यानी मंगलवार को है।
खरना- छठ पर्व का दूसरा खरना का होता है, जिसमें व्रती दिनभर निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को विशेष प्रसाद के साथ व्रत तोड़ते है। प्रसाद में खासतौर पर गुड़ की खीर, रोटी और केला शामिल होता है। पूजा के बाद खरना का प्रसाद खाकर व्रती 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ करती है। इस साल खरना 6 नवंबर बुधवार को है।
संध्या अर्घ्य- तीसरे दिन व्रती गंगा, तालाब, या किसी नदी किनारे जाकर संध्या के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य देते है। व्रत का यह सबसे महत्वपूर्ण क्षण होता है, जब भक्तजन सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पण कर उनसे कृपा और आशीर्वाद की कामना करते है। इस साल 7 नवंबर गुरुवार को डूबते हुए भगवान सूर्य को संध्या का अर्घ्य दिया जाएगा।
प्रातः कालीन अर्घ्य- चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ पूजा का समापन होता है। यह भोर में होता है, जो आस्था और श्रद्धा का प्रतीक होता है। इस समय परिवार और समाज के लोग एकत्र होते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु भगवान सूर्य और छठी मईया से प्रार्थना करते हैं। इस साल 8 नवंबर शुक्रवार की सुबह उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
छठ पर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित
इस पावन पर्व को लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार बताया गया है कि, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब कुष्ट रोग से पीड़ित थे, जिसके चलते मुरलीधर ने उन्हें सूर्य आराधना की सलाह दी। कालांतर में साम्ब ने सूर्य देव की विधिवत व सच्चे भाव से पूजा की। भगवान सूर्य की उपासना के फलस्वरूप साम्ब को कुष्ट रोग से मुक्ति मिल गई।
इसके बाद उन्होंने 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण करवाया था। इनमें सबसे प्रसिद्ध कोणार्क का सूर्य मंदिर है, जो ओडिशा में है. इसके अलावा, एक मंदिर बिहार के औरंगाबाद में है, जिसे देवार्क सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है।
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