धनतेरस की पूजा एवं खरीददारी का शुभ मुहूर्त (सौ.सोशल मीडिया)
Dhanteras Kab Hai 2025: हिंदू धर्म में धनतेरस का विशेष महत्व है। पांच दिवसीय उत्सव की शुरुआत धनतेरस से हो जाती है। पंचांग के मुताबिक, हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल त्रयोदशी तिथि दो दिन होने के कारण धनतेरस की तिथि को लेकर थोड़ा असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
इस दिन कुबेर जी के साथ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसके अलावा इस दिन सोना-चांदी, गणेश-लक्ष्मी मूर्ति के अलावा बर्तन, झाड़ू, वाहन से लेकर अन्य चीजों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है।
इसके साथ ही पांच दिनों के होने वाले दिवाली के पर्व का आरंभ हो जाता है। धनतेरस के बाद नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन देवताओं के वैद्य भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति हुई थी। इसी कारण इसे धन्वंतरि जयंती भी कहा जाता है। आइए जानते हैं धनतेरस की सही तिथि, खरीदारी का समय से लेकर महत्व तक और सबसे जरूरी कि धनतेरस कब है?
पंचांग के अनुसार इस साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 18 अक्टूबर 2025, शनिवार के दिन दोपहर 12:18 बजे प्रारंभ होकर 19 अक्टूबर 2025 को दोपहर 01:51 बजे समाप्त होगी।
ऐसे में धनतेरस का पावन पर्व 18 अक्टूबर 2025 को ही मनाया जाएगा। धनतेरस की पूजा का सबसे उत्तम मुहूर्त सायंकाल 07:16 से लेकर 08:20 बजे तक रहेगा। वहीं इस दिन प्रदोष काल शाम को 05:48 से 08:120 बजे तक रहेगा, जबकि वृषभ काल शाम को 07:16 से 09:11 बजे तक रहेगा।
धनतेरस के दिन स्वर्ण की खरीददारी के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त यानि अमृत काल प्रात:काल 8:50 से 10:33 बजे तक रहेगा।
शुभ : प्रात:काल 07:49 से लेकर 09:15 बजे तक
लाभ : दोपहर 01:32 से लेकर 02:57 बजे तक
अमृत : दोपहर 02:57 से शाम 04:23 बजे तक
चर : दोपहर 12:06 से लेकर 01:32 बजे तक
शुभ : सायंकाल 08:57 से रात्रि 10:32 बजे तक
लाभ : सायंकाल 05:48 से 07:23 बजे तक
अमृत : रात्रि 10:32 से लेकर 19 अक्टूबर 2025 को पूर्वाह्न 00:06 बजे तक
चर : पूर्वाह्न 12:06 से लेकर 19 अक्टूबर को पूर्वाह्न 01:41 बजे तक
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हिंदू धर्म में धनतेरस के दिन दीपदान करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन घर और बाहर दीया जलाने से पूरे साल सुख-सौभाग्य बना रहता है। हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन 13 दीये विशेष रूप से जलाने का विधान है।
जिसमें से एक यम देवता के लिए दक्षिण दिशा में जलाया जाता है। दूसरा दीया मां लक्ष्मी के लिए जलाया जाता है। जबकि दो दीये मुख्य द्वार के अगल-बगल और एक दीया तुलसी जी के लिए तथा एक दिया छत पर तथा बाकी दीये पवित्र स्थान जैसे पीपल आदि के नीचे या फिर मंदिर पर रखना चाहिए।