प्रतीकात्म फोटो (सोर्स - सोशल मीडिया
जयपुर: राजस्थान के बीकानेर जिले से एक पूजा खेडकर की तरह ही मामला सामने आया है, जहां पर तीन प्रोफेसर देशराज, हरिश्चंद्र और राजकुमार ने नकली कैंडिडेट के जरिए से दिव्यांगता का सर्टिफिकेट प्राप्त करने का आरोप लगा है। मामले की जांच एसओजी के द्वारा करवाई जा रही है, और प्रथम दृष्टया साक्ष्यों के आधार पर सभी शिक्षकों को जयपुर स्थित सवाई मानसिंह हॉस्पिटल के मेडिकल बोर्ड के सामने पेश होने के लिए निर्देशित किया है। इस मामले का खुलासा भी तीनों शिक्षक के दोस्तों ने ही किया था, इस मामले को एसओजी में शिकायत करने के बाद खुद शिक्षकों के ही दोस्तो ने ही खुलास कर दिया था।
सभी शिक्षकों की मेडिकल जांच के बाद रिपोर्ट को सभी संबंधित विभागों को भेजा जाएगा। इस फर्जी कलाकारी की सूचना संयुक्त निदेशक शिक्षा विभाग को भेजी जाएगी। अभी प्रथम दृष्टया जांच में सामने आ रहा है कि ये तीनों शिक्षक स्कूल में लगातार पढ़ा रहे हैं और शारीरिक रूप से पूरी तरह से स्वस्थ लग रहे हैं। शिक्षकों के चलने-फिरने और बोर्ड पर लिखने में भी किसी तरह की कोई परेशानी नहीं देखी जा सकती है, बता दें कि अभी तक की उपलब्ध जानकारी के हिसाब से तीनों शिक्षक कार को भी चला लेते हैं। इन सभी के बावजूद तीनो अध्यपकों ने अपने प्रमाण पत्रों में 40% दिव्यांगता दर्शाई थी।
जवाहरलाल नेहरू हॉस्पिटल के अधीक्षक डॉक्टर अरविंद खरे ने बताया है कि सभी शिक्षकों की नेत्र रोग विशेषज्ञों के माध्यम से उनकी जांच करवाई गई है जिससे इनकी दृष्टि संबंधी हर प्रकार की समस्या को समझ लिया जायेगा। यह बात बहुत गंभीर हो जाती है कि 2024 में प्रायोजित प्राध्यापक भर्ती परीक्षा के समय आवेदन से लेकर डॉक्यूमेंट जांच तक इन्होंने अपने दिव्यांगता सर्टिफिकेट का इस्तमाल किया था। अब यदि जांच में यह पता चलता है कि इन शिक्षकों ने गलत तरीके से इस दिव्यांगता के प्रमाण पत्र को पाप्त किया है, तो इन सभी पर कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया चलाई जाएगी।
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इस सभी के अलावा शिक्षा विभाग द्वारा भी तीने शिक्षकों के खिलाफ सख्त विभागीय कार्रवाई करी जा सकती है, जिसमें नौकरी से लेकर सस्पेंड हो या फिर बर्खास्तगी तक की पूरी संभावना है। राज्य की सरकार ने इस तरह के फर्जीवाड़े को लेकर सख्त मूड में है, अभी इस मामले की जांच जारी चल रही है, देखना होगा कि यदि दोष सिद्ध होने पर तीनों शिक्षकों को न्यायिक प्रक्रिया का कितना सामना करना पड़ सकता है, और कितने समय में इस मामले पर किस तरह का न्यायिक फैसला आता है।