योगी आदित्यनाथ व अमित शाह (कॉन्सेप्ट फोटो)
UP BJP President: सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नये प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पिछले कई माह से चल रही अटकलें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। बीजेपी ने अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव फिलहाल टाल दिया है। इस पर सितंबर में होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद ही आगे का फैसला किया जाएगा। ये कदम 2024 के बाद बदले राजनीतिक हालात में पार्टी के अंदरूनी ढांचे को संभलकर ढालने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
पहले यह चर्चा थी कि उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष की घोषणा के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का निर्वाचन होगा, लेकिन अब संकेत मिल रहे हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होने के बाद ही उत्तर प्रदेश को नया नेतृत्व मिलेगा।
इसकी एक वजह यह भी है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए आधे से अधिक राज्यों के अध्यक्षों के चयन का ‘कोरम’ पूरा हो गया है। देश के 28 राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव संपन्न हो चुका है।
न्यूज एजेंसी पीटीआई को भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष का निर्वाचन होगा। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल नेताओं को ‘दिल्ली’ में कह दिया गया है कि उत्तर प्रदेश में जाकर काम करिए, जो निर्णय होगा, पता चल जाएगा।
यह पूछे जाने पर कि कौन अध्यक्ष बनेगा, उन्होंने कहा कि अभी कोई दावा करना मुश्किल है, क्योंकि पार्टी सिर्फ तात्कालिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर नहीं, बल्कि दूरगामी समीकरणों के आधार पर फैसला करती है।
मार्च के दूसरे पखवाड़े में भाजपा उत्तर प्रदेश के संगठनात्मक चुनाव प्रभारी पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडेय ने 98 इकाइयों में 70 में जिलाध्यक्षों की घोषणा की थी और उसके बाद से ही यह कयास तेज हो गये कि जल्द ही प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा होगी, क्योंकि आधे से अधिक जिलों में निर्वाचन के बाद ही प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी होती है। हालांकि चार माह बीतने के बाद भी पार्टी अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची।
उत्तर प्रदेश में अध्यक्ष पद के कई दावेदारों के नाम चर्चा में हैं। 2027 में विधानसभा चुनाव से पहले 2026 में पंचायत चुनाव होने हैं, इसलिए पार्टी नेतृत्व अध्यक्ष के चयन के लिए जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों पर ध्यान केन्द्रित किये हुए है।
भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी ने अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) अभियान को तेज किया है और अब तो सपा पीडीए पाठशाला का भी आयोजन कर रही है, इसलिए राजनीतिक विश्लेषकों के एक वर्ग को लगता है कि भाजपा अपने अध्यक्ष के चयन में पिछड़े वर्गों को प्राथमिकता दे सकती है।
पार्टी के करीबी सूत्रों का कहना है कि भाजपा अपने नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए एक बार फिर पिछड़े वर्ग की ओर रुख कर सकती है। सूबे में कई नामों को लेकर चर्चा जारी है। लेकिन पार्टी जब तक अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं चुन लेती तब तक यूपी बीजेपी के मुखिया की कुर्सी किसी को नहीं सौंपी जाएगी।
2016 से, इस पद पर ब्राह्मण और ओबीसी, दोनों ही समुदायों के नेता रहे हैं: डॉ. महेंद्र नाथ पांडे (ब्राह्मण), जबकि स्वतंत्र देव सिंह और मौजूदा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ओबीसी समुदाय से हैं। किसी दौर में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आने वाले कल्याण सिंह (लोध जाति) और ब्राह्मण नेता कलराज मिश्र की जोड़ी ने भाजपा को उत्तर प्रदेश में मजबूती दी थी, लेकिन बाद के दिनों में लोध जाति को कभी नेतृत्व का मौका नहीं मिला।
राजनीतिक जानकारों का दावा है कि इस बार भाजपा उत्तर प्रदेश के नेतृत्व के लिए लोध समाज की सबसे मजबूत दावेदारी है। इसके लिए प्रदेश सरकार के मंत्री धर्मपाल सिंह और केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा का नाम भी सामने आ रहे हैं।
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दूसरी तरफ पिछड़े वर्ग में आने वाली कुर्मी जाति से उत्तर प्रदेश में विनय कटियार, ओम प्रकाश सिंह और स्वतंत्र देव सिंह भाजपा की राज्य इकाई का नेतृत्व कर चुके हैं और अब भी इस पद के लिए स्वतंत्र देव सिंह का नाम चर्चा में है। इनके अलावा निषाद समाज से राज्यसभा सदस्य बाबू लाल निषाद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति का भी नाम चर्चा में है।
भाजपा अगर ब्राह्मण समाज से प्रदेश अध्यक्ष का चयन करती है तो पूर्व उप मुख्यमंत्री व राज्यसभा सदस्य डॉक्टर दिनेश शर्मा, भाजपा के प्रदेश महामंत्री व एमएलसी गोविंद नारायण शुक्ल, गौतमबुद्ध नगर के सांसद महेश शर्मा और पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी समेत कई नाम दावेदारों की सूची में हैं।
बहुजन समाज पार्टी (BSP) के लगातार कमजोर होते जनाधार के चलते भाजपा की नजर दलितों पर खासतौर से पूर्वांचल से लेकर पश्चिम तक प्रभाव रखने वाली सोनकर जाति पर है। यही वजह है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के लिए पार्टी के पूर्व प्रदेश महामंत्री व पूर्व सांसद विद्यासागर सोनकर का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। दलित समाज की गैर जाटव जातियों के अन्य कई नेता भी अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हैं।
(एजेंसी इनपुट के साथ)