
कॉन्सेप्ट इमेज
नवभारत डिजिटल डेस्क : बिहार की सियासत में दशकों से एक नाम है जिसने न सिर्फ स्थिरता दी, बल्कि बदलाव की नई इबारत भी लिखी। यह नाम किसी और व्यक्ति की नहीं बल्कि खुद नीतीश कुमार हैं। आज जब हम इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहे हैं, तो सवाल सिर्फ इतना है कि क्या सुशासन बाबू एक बार फिर इतिहास दोहराएंगे?
दरअसल, नीतीश कुमार की सियासी सफलता के पीछे दो बड़े फैसले हैं। पहला, जंगलराज का अंत और दूसरा, आधी आबादी को साथ जोड़ना। इन दोनों ट्रंप कार्ड्स ने बिहार की जातिगत राजनीति को एक नई दिशा दी, जहां न सिर्फ लोगों ने राहत की सांस ली, बल्कि महिलाओं ने पहली बार सियासी और सामाजिक मंचों पर अपनी पहचान बनानी शुरू की।
नीतीश कुमार ने 2006 में एक ऐसा फैसला लिया, जिसने बिहार की लड़कियों को पंख देने का काम किया। मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना की शुरुआत ने गांवों की बेटियों को स्कूल की दहलीज तक पहुंचाने का कां किया। इसकी वजह से स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या में जबरदस्त इजाफा देखने को मिला और पहली बार सरकार के स्कूलों में लड़कियों की उपस्थिति लड़कों के बराबर हो गई।
यह योजना इतनी प्रभावशाली रही कि इसकी चर्चा अमेरिका से लेकर अफ्रीका तक हुई। संयुक्त राष्ट्र यानी UNO ने न सिर्फ इसकी सराहना की, बल्कि जाम्बिया और माली जैसे अफ्रीकी देशों में इसे लागू भी करवाया। अमेरिका से आए एक प्रोफेसर ने योजना का ग्राउंड स्टडी कर रिपोर्ट बनाई, जिसे UNO ने बेहद सकारात्मक रूप में लिया।
सिर्फ शिक्षा ही नहीं, सियासी भागीदारी में भी नितीश कुमार ने आधी आबादी को बराबर की हिस्सेदारी दी। 2006 में पंचायती राज और नगर निकाय चुनावों में महिलाओं को 50 प्रतिशत का आरक्षण देकर नितीश ने सामाजिक क्रांति की नींव रखने का काम किया। इसकी वजह से गांव की महिलाएं मुखिया, वार्ड मेंबर और पार्षद बनीं। इससे महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा और वे निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा बन गाईं।
बिहार के स्कूलों में 2011 में पोशाक योजना से बढ़ा नामांकन
साल 2011 में शुरू की गई ‘मुख्यमंत्री बालिका पोशाक योजना’ ने लड़कियों को स्कूल से जोड़े रखने में बड़ी भूमिका निभाई। कक्षा 9वीं से 12वीं की छात्राओं को हर साल ड्रेस के लिए आर्थिक सहायता दी गई, जो 2018-19 में बढ़ाकर 1500 रुपये कर दी गई। इसका सीधा असर स्कूल नामांकन पर पड़ा, जहां पहले सिर्फ 33% लड़कियां नामांकित थीं, वहीं ये आंकड़ा 97 प्रतिशत तक पहुंच गया।
नीतीश कुमार ने महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देते हुए 2016 में एक ऐतिहासिक फैसला लिया। राज्य सरकार की सभी नौकरियों में महिलाओं को 35 प्रतिशत का आरक्षण देने का काम किया। इससे हजारों महिलाओं को रोजगार मिला और समाज में उनका दर्जा मजबूत हुआ।
यह वही साल 2016 था जब नीतीश कुमार ने महिलाओं की सबसे बड़ी मांग को सुना और बिहार में शराबबंदी लागू कर दी। इस कानून से घरेलू हिंसा में गिरावट देखने को मिली, महिलाओं को राहत मिली और उन्होंने नितीश को अपना मसीहा मान लिया। इस तरीके से बिहार के सुशासन बाबू ने महिलाओं का भरोसा जीत लिया।
ऐसे में अब जब 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव सिर पर है, सीएम नितीश कुमार ने ‘महिला संवाद कार्यक्रम’ शुरू कर फिर से महिलाओं को जोड़ने की कवायद तेज कर दी है। साल 2010 में जब उन्हें 115 सीटें मिली थीं, तो उसमें आधी आबादी का बड़ा योगदान था। इस बार भी वे उसी समर्थन को दोहराना चाहते हैं।
राजनीतिक खबरों को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें
हालांकि, तेजस्वी यादव ने ‘माई बहन सम्मान योजना’ की घोषणा कर महिलाओं को लुभाने की कोशिश की है। ऐसे में इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि महिला वोर्टस का समर्थन फिर से नीतीश के खाते में जाता है या तेजस्वी यादव इसे अपनी ओर खीचने में सफल हो पाते हैं।






