सीएम नीतीश और पीएम मोदी, फोटो - सोशल मीडिया
नवभारत डिजिटल डेस्क : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की हलचल तेज हो गई है और इसी बीच वक्फ संशोधन विधेयक 2025 राज्य की सियासत में नए आयाम जोड़ रहा है। बिहार भारत का पहला राज्य बन गया है, जहां यह चुनाव किसी वक्फ कानून के पारित होने के बाद होने जा रहा है। ऐसे में यह मुद्दा वोट बैंक की राजनीति और दलों की रणनीतियों पर गहरा असर डाल सकता है।
बिहार की लगभग 18 प्रतिशत मुस्लिम आबादी न सिर्फ राज्य की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है, बल्कि कई विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका भी निभाती है। राजद, कांग्रेस और अब जन सुराज पार्टी इस समुदाय का समर्थन पाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि सीमांचल, किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और पूर्वी बिहार के इलाकों में मुस्लिम वोटों का रुझान चुनावी समीकरणों को बदलने की ताकत रखता है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू ने अब तक खुद को धर्मनिरपेक्ष राजनीति के पैरोकार के रूप में पेश किया है। लेकिन केंद्र सरकार के इस विधेयक का समर्थन कर जेडीयू ने खुद को मुस्लिम मतदाताओं के सवालों के घेरे में खड़ा कर लिया है। इतना ही नहीं जैसे ही यह बिल दोनों सदनों से पारित हुआ, जदयू के 5 मुश्लिम विधायक पार्टी से इस्तीफा दे दिए। यदि जेडीयू मुस्लिम असंतोष को संभाल नहीं पाती, तो उसका असर सीमांचल और शहरी सीटों पर पड़ सकता है।
भाजपा और एनडीए इस विधेयक को सुधारात्मक और पारदर्शी कदम बता रहा है। उनका कहना है कि इससे वक्फ संपत्तियों में भ्रष्टाचार रुकेगा और गरीब मुसलमानों को सीधे लाभ मिलेगा। भाजपा इस मुद्दे को हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के रूप में भी इस्तेमाल कर सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां हिंदू-मुस्लिम आबादी में संतुलन है।
राजद जहां मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे सीटें बढ़ाने की फिराक में है, वहीं प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने की तैयारी में है। इससे विपक्षी मतों में बंटवारा हो सकता है, जिसका सीधा असर एनडीए पर देखने को मिल सकता है।
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ध्यान देने वाली बात यह है कि यदि मुस्लिम मतदाताओं का गुस्सा बरकरार रहता है और जेडीयू-एलजेपी जैसी पार्टियां इसे संभालने में विफल रहती हैं, तो एनडीए को 10-15 सीटों का नुकसान हो सकता है। वहीं दूसरी ओर, मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण से राजद को 15-20 अतिरिक्त सीटें मिल सकती हैं।