आज देशभर में होलिका दहन का त्योहार मनाया जा रहा है इस दिन को बुराई पर अच्छाई का प्रतीक भी मानते है। रंगों का त्योहार खेलने से पहले होलिका दहन किया जाता है। अगर आप भी इस खास दिन को बड़े खास ढंग से मनाना चाहते है तो इन शुभ संदेशों को भेंट कर सकते है।
होलिका दहन की शुभकामनाएं (सौ. डिजाइन फोटो)
Holika Dahan 2025: आज देशभर में होलिका दहन का त्योहार मनाया जा रहा है इस दिन को बुराई पर अच्छाई का प्रतीक भी मानते है। रंगों का त्योहार खेलने से पहले होलिका दहन किया जाता है। अगर आप भी इस खास दिन को बड़े खास ढंग से मनाना चाहते है तो इन शुभ संदेशों को भेंट कर सकते है। वहीं पर चलिए जानते है होलिका दहन की खास बातें..
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन पर्व को बुराई पर हुई अच्छाई की जीत के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। जो सबसे खास दिनों में से एक होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार- होलिका दहन को लेकर भक्त प्रह्लाद की कथा का वर्णन मिलता है। बताया गया है कि कैसे अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु ने पुत्र की हत्या के लिए षड्यंत्र रचा था, जो भगवान नारायण की कृपा से सफल नहीं हो पाया। इसे छोटी होली और होलिका दीपक के नाम से भी जाना जाता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर प्रदोष काल में होलिका दहन का आयोजन किया जाता है। इस दिन घर के बाहर लकड़ियां इकट्ठा कर होलिका बनाई जाती है और इसमें होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है और चार मालाएं जो मौली, फूल, गुलाल, ढाल और गोबर से बने खिलौनों से बनाई जाती है, उन्हें अलग से रख लिया जाता है।
होलिका दहन की पूजा में रोली, माला, अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, गुड़, कच्चे सूत का धागा, बतासे, नारियल एवं पंच फल इत्यादि पूजा की सामग्री के रूप में एक थाली में रखे जाते हैं। इन सभी चीजों को होलिका दहन के समय होलिका के पास रखा जाता है।
कहते हैं कि, होलिका दहन के दिन श्रद्धा भाव से होलिका के चारों ओर 7 से 11 बार कच्चे सूत के धागे को लपेट दिया जाता है। होलिका दहन के बाद सभी सामग्रियों को एक-एक करके होलिका में आहुति दी जाती है और फिर जल से अर्घ्य प्रदान किया जाता है। साथ ही भोग लगाया जाता है।
होलिका दहन के पीछे छिपा वैज्ञानिक कारण यह है कि इस पर्व के दौरान जलाई गई लकड़ियों से वातावरण में फैले हुए खतरनाक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और होलिका की परिक्रमा करने से शरीर पर जमे हुए कीटाणु भी अलाव की गर्मी से मर जाते हैं।