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भारत के कोने-कोने में बिखरा है पारंपरिक परिधान का जादू, ‘वर्ल्ड एथनिक डे’ पर जानिए कश्मीर से लेकर असम तक का फेमस पहनावा

भारत विविधताओं और संस्कृति वाला देश है जहां पर विभिन्न राज्यों से संस्कृतियां बिखरती है। अलग-अलग ढंग के परिधान हमारे यहां अलग-अलग समुदायों के प्रतीक हैं। पारंपरिक परिधान और पारंपरिक पकवान के प्रति जश्न मनाने के लिए 19 जून को हर साल विश्व भर में ‘वर्ल्ड एथनिक डे’ मनाया जाता है।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Jun 18, 2025 | 11:47 AM
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World Ethnic Day: भारत विविधताओं और संस्कृति वाला देश है जहां पर विभिन्न राज्यों से संस्कृतियां बिखरती है। अलग-अलग ढंग के परिधान हमारे यहां अलग-अलग समुदायों के प्रतीक हैं। पारंपरिक परिधान और पारंपरिक पकवान के प्रति जश्न मनाने के लिए 19 जून को हर साल विश्व भर में ‘वर्ल्ड एथनिक डे’ मनाया जाता है। जानते हैं चलिए भारतीय संस्कृतियों के इन परिधानों के बारे में...

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फेरन- यह पारंपरिक परिधान खासकर कश्मीर का है जिसे पुरूष और महिलाएं पहनती है। इन पोशाक को फेरन और पुट का नाम दिया गया है जो ऊन का बना हुआ एक लम्बा कोट होता है। कश्मीर का मौसम ठंडा होता है इसके लिए इन पारंपरिक परिधान को पहना जाता है। इसकी जड़ें मुगल काल से जुडी हैं। उस समय के शाही घरानों में इस लम्बे परिधान का चलन था। इन पर ज़री का महीन काम होता है। हिंदू और मुस्लिम दोनों ही इसे पहनते है।

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मेखला चादर- यह पारंपरिक परिधान असम राज्य में फेमस है। असम की महिलाओं द्वारा मेखला चादर को पहना जाता है। असमी महिलाओं द्वारा इस मेखला चादर को बुना जाता है। गुवाहाटी से मात्र 35 किलोमीटर दूर स्यूलकुची नामक एक छोटा सा शहर इसके उत्पादन के लिए जाना जाता है। यहां पर मेखला चादर मुगा, एरी और पट सिल्क के कपड़े में होता है।

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अचकन- यह परिधान पुरूषों के लिए होता है।घुटने की लंबाई तक की पारंपरिक पुरुषों की जैकेट है, शेरवानी के जैसे ही। अचकन बहुत ही हल्के कपडे से बनती है और इसी वजह से यह शेरवानी से अलग है, जो कि भारी होती है। दरअसल यह परिधान उत्तर भारत से जुड़ा हुआ है।कहा जाता है कि 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अचकन दिल्ली सल्तनत व मुग़ल साम्राज्य के साथ-साथ तुर्की व फ़ारसी सभ्यताओं में भी प्रसिद्द परिधान था।

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नौवारी साड़ी- महाराष्ट्र में इस परिधान की चर्चा तो आपने सुनी होगी। यह परिधान महिलाएं शादी या किसी शुभ अवसर पर पहनती है। नौवरी यानि नौ गज की साड़ी से होता है।यह साड़ी सूती कपडे से बनी होती है और इसे बिना पेटीकोट ही पहना जाता है। इस साड़ी का इतिहास मराठा साम्राज्य से जुड़ा है। मराठा स्त्रियां युद्ध में पुरुषों की सहायता हेतु जाया करती थी। उस दौरान नौवारी साड़ी सुविधा के लिए बनाई गई थी।

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ठेल/थेल- हरियाणा का यह परिधान सबसे खास है इसे जाट समुदाय द्वारा पहना जाता है। यहां के परिधान में चमकदार भारी कपडे से बना घाघरा और मनमोहक प्रिंटेड ओढ़नी। घाघरा हमेशा से भारतीय परिधान शैली का हिस्सा रहा है। जगह औऱ समुदाय की वजह से इसमें बदलाव होता है।मुख्य रूप से सूती कपड़े से बनायी जाने वाली यह पोशाक आजकल सिफोन, जोरजट आदि में भी उपलब्ध है। इस हरियाणवी घाघरे की लम्बाई घुटने से थोड़े नीचे तक होती है। घाघरे के साथ कमीज यानि शर्ट पहनी जाती है।

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धोती- धोती नाम संस्कृत शब्द ‘धौता’ से बना है। इसे न केवल भारत में बल्कि श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव जैसे कई देशों के पारंपरिक पोशाक का हिस्सा माना जाता है। यह सबसे पुराना पारंपरिक परिधान है। केरल में मुंडू, महाराष्ट्र में धोतार, पंजाबी में लाचा और उत्तर प्रदेश और बिहार में मर्दानी जैसे इसके विभिन्न क्षेत्रीय नाम हैं।

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पानेतर- गुजरात के पारंपरिक परिधान में इसका नाम आता है। यह पारम्परिक रूप से शादी पर दुल्हन को उसके मामा द्वारा दी जाती है। यह साडी सफ़ेद रंग में होती और इसका पल्लू चटक लाल रंग का। इसे एक और साड़ी घरचोला (जो दूल्हे के परिवार से आती है) के साथ उपहार स्वरुप दिया जाता है। पूरे शादी समारोह के दौरान दुल्हन सिर पर घरचोला ओढ़नी और पानेतर साड़ी पहनती है।

Know about the famous attire from kashmir to assam on world ethnic day

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Published On: Jun 18, 2025 | 11:47 AM

Topics:  

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  • Tradition

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