यवतमाल न्यूज
Yavatmal News: ग्रामीण क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास की रीढ़ मानी जाने वाली पंचायत राज व्यवस्था में फिलहाल जनप्रतिनिधियों के बजाय अधिकारियों का राज होने से विकास कार्यों पर बड़ा ब्रेक लग गया है। 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायत राज व्यवस्था को और अधिक सक्षम बनाने का प्रयास किया गया था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस व्यवस्था की त्रिसूत्री में से दो महत्वपूर्ण स्तरों पर चुनाव नहीं होने के कारण लोकतंत्र की जगह प्रशासनिक तंत्र ने ले ली है।
पंचायत राज व्यवस्था की संरचना जिला परिषद, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत- इन तीन स्तरों पर आधारित है। ग्राम पंचायत के माध्यम से गांव स्तर पर विकास कार्यों की योजना बनाई जाती है, उन कार्यों को जिला परिषद से मंजूरी मिलती है और निधि के लिए वरिष्ठ स्तर पर पैरवी की जाती है। ग्राम पंचायत और जिला परिषद के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में पंचायत समिति कार्यरत होती है।
जब इन तीनों स्तरों पर लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि कार्यरत होंगे, तभी ग्रामीण विकास को सही मायने में गति मिलती है। लेकिन पिछले एक साल से पंचायत समिति और जिला परिषद के चुनाव नहीं होने के कारण इन दोनों संस्थानों पर प्रशासक के रूप में अधिकारी कार्यरत हैं।
जिले के भौगोलिक विस्तार और ग्रामीण क्षेत्रों की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए, प्रशासनिक तंत्र के लिए हर गांव तक प्रभावी ढंग से पहुंचना संभव नहीं हो पाता है। सभी जगहों पर अधिकारी और कर्मचारी लगातार ध्यान नहीं रख पाते, इसलिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति अत्यावश्यक होती है।
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पंचायत समिति सदस्यों और जिला परिषद सदस्यों के माध्यम से ही विकास कार्यों को -गति मिलती है, इसलिए ग्रामीणों का ध्यान स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के चुनावों पर टिका हुआ है। वर्तमान में जिला परिषद और पंचायत समिति पर प्रशासक होने के कारण पंद्रहवें वित्त आयोग की अनटाइड निधि के पहले चरण से कई गांव वंचित रह गए हैं।
चूंकि जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव जनवरी 2026 में होने की संभावना है, इसलिए गांव स्तर पर इच्छुक उम्मीदवारों ने अपनी तैयारी जोर-शोर से शुरु कर दी है यह बताया जा रहा है कि नगरपालिका एवं महानगरपालिकाओ के चुनाव खत्म होने के बाद जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव होंगे। इस कारण ग्रामीण राजनीति में हलचलों में तेज़ी आ गई है और इच्छुक उम्मीदवारों ने तैयारी शुरु कर दी है।