किसान आत्महत्या (डिजाइन फोटो)
2025 Agrarian Crisis: किसी भी क्षेत्र में पहले नंबर पर रहना गर्व की बात होती है, लेकिन मौत के आंकड़ों में वह भी किसान आत्महत्याओं में यवतमाल जिला पिछले 25 वर्षों से अव्वल स्थान पर है। यह जिले के लिए दिल दहला देनेवाला सच है। अब 2025 भी समाप्ति की ओर है, पर किसानों का दुख कम होने का नाम नहीं ले रहा।
इस वर्ष भी जिले के साढ़े तीन सौ किसानों ने मौत को गले लगाया और यह आंकड़ा न केवल विभाग में बल्कि पूरे राज्य में सबसे अधिक है। लेकिन सरकारी मदद के मामले में यह “सबसे अधिक” वाला मानदंड कहीं भी लागू नहीं होता और यही किसानों का सबसे बड़ा दर्द बन गया है। साल की शुरुआत से ही किसान आत्महत्याओं का सिलसिला थमने के बजाय बढ़ता ही गया।
खरीफ में हुई अतिवृष्टी ने हालात और भी खराब किए। जनवरी से 11 दिसंबर तक कुल 352 किसानों ने आत्महत्या की। न केवल खराब पैदावार, बल्कि समर्थन मूल्य पर न मिलने वाला उचित भाव किसानों के लिए सबसे बड़ा घातक कारक बनकर उभरा है। इसके साथ कभी ज्यादा बारिश, कभी सूखा, बढ़ते बैंक और साहूकारों के कर्ज, वसूली का दबाव इन सबने किसानों की जिंदगी को असहनीय बना दिया है।
हाथ में पैसे न होने से समाज में किसानों की साख गिर गई है यह कटु सत्य है। बच्चों की शिक्षा, बेटियों की शादी, बीमारियों में इलाज इन जरूरतों के समय हाथ तंग रहने से उनका आत्मसम्मान लगातार टूटता जा रहा है। दूसरी ओर सरकार केवल मदद, पैकेज और कर्जमाफी जैसी कागज़ी घोषणाओं में उलझी दिखाई देती है। पहले कृषि समृद्धि कृषि विकास प्रकल्प (केएम) लागू किया गया, पर उसमें भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए, एफआईआर तक दर्ज हुई, पर उसके बाद कुछ नहीं हुआ।
यवतमाल में बलिराजा चेतना मिशन भी शुरू किया गया परंतु कीर्तन–भजन पर करोड़ों खर्च करने के अलावा उसका कोई परिणाम सामने नहीं आया। हर साल समर्थन मूल्य पर किसानों को धोखा मिलता है। इस वजह से खून-पसीने से उगाई गई फसल बाजार में ले जाते वक्त किसान खुद ही एक अपराधी जैसा महसूस करने लगा है।
| जिला | आत्महत्या (संख्या) |
|---|---|
| यवतमाल | 6,515 |
| अमरावती | 5,517 |
| बुलढाणा | 4,614 |
| अकोला | 3,257 |
| वाशिम | 2,160 |
| जिला | आत्महत्या (संख्या) |
|---|---|
| यवतमाल | 352 |
| अमरावती | 181 |
| बुलढाणा | 170 |
| अकोला | 160 |
| वाशिम | 120 |
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किसानों की वास्तविक समस्याओं को समझकर उन्हें मजबूत बनाने के उद्देश्य से वसंतराव नाइक किसान स्वावलंबन मिशन की स्थापना की गई। यवतमाल में इसके लिए भव्य इमारत भी बनाई गई। लेकिन इस मिशन का ठोस परिणाम जिला आज तक नहीं देख पाया।
पहले किशोर तिवारी और अब एड. नीलेश हेलोंडे को मिशन का अध्यक्ष और राज्य मंत्री दर्जा दिया गया, पर अमावस्या – पूर्णिमा के दिन जिले में एकाध दौरा करने के अलावा उन्होंने कोई महत्वपूर्ण कार्य किया हो ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता।
आत्महत्या करने वाले किसान के परिवार को सरकार 1 लाख रुपए की सहायता देती है। लेकिन इसके लिए जिला स्तर पर नियमित बैठकें तक नहीं होतीं। बैठकों में कई जनप्रतिनिधि उपस्थित रहते भी नहीं। आत्महत्याएँ बढ़ रही हैं, पर 20 वर्षों में इस सहायता राशि में एक रुपए की भी वृद्धि नहीं की गई। साथ ही यह तय करते समय कि आत्महत्या कर्ज के कारण हुई या नहीं हर बार अलग-अलग मानदंड लागू किए जाते हैं। पूरी जांच केवल स्थानीय प्रशासन की संवेदनशीलता और इच्छा पर निर्भर हो जाती है।