वर्धा न्यूज
Crop Damage Wardha: वर्धा जिले में इस वर्ष खरीफ सीजन में 2 लाख 16 हजार 823.45 हेक्टेयर क्षेत्र पर कपास की बुवाई हुई। लेकिन समय–समय पर हुई अतिवृष्टि से खड़ी फसलों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा। इसके बाद किसानों ने अपनी फसल की विशेष देखभाल की। वर्तमान में कपास उत्पादक किसान तोड़ाई के कार्य में तेजी ला रहे हैं। जिले में पहली तोड़ाई पूरी हो चुकी है, जबकि कई स्थानों पर दूसरी और कुछ जगहों पर तीसरी तोड़ाई जारी है।
इसी बीच कपास पर रस चूसने वाले कीटों का प्रकोप बढ़ने से किसानों की परेशानी और भी बढ़ गई है। सीजन की शुरुआत में जिले में बारिश ने किसानों को इंतजार करवाया, जबकि बाद में हुई लगातार अतिवृष्टि से कई क्षेत्रों में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई। अतिवृष्टि का सर्वाधिक हानी सोयाबीन, कपास और अन्य फसलों को लगा।
बाद में सोयाबीन पर चारकोल रॉट और यलो मोजेक जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ा, जिससे किसानों की कमर ही टूट गई। उपज का खर्च भी न निकल पाने की आशंका के चलते कई किसानों ने सोयाबीन की फसल पशुओं के लिए खुली छोड़ दी, तो कुछ ने खड़ी फसल को आग तक के हवाले कर दिया।
कुल मिलाकर इस बार सोयाबीन उत्पादकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। वहीं अतिवृष्टि और बाढ़ की मार से किसी तरह बची कपास की फसल की किसानों ने समय–समय पर अच्छी देखभाल की, जिससे पौधों की बढ़वार ठीक रही और बॉल भी आई।
क्रॉपसैप की रिपोर्ट के अनुसार सेलू तहसील के वहितपुर और पिंपलगांव गांवों में कपास की फसल पर गुलाबी बॉलवर्म का गंभीर प्रकोप दर्ज किया गया है। वहितपुर में 74 हेक्टेयर और पिंपलगांव में 196 हेक्टेयर क्षेत्र की कपास आर्थिक नुकसान की सीमा से अधिक प्रभावित पाई गई है। कृषि विभाग ने इस स्थिति की आधिकारिक पुष्टि भी की है।
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जिले में इस खरीफ सीजन में 59 हजार 497.60 हेक्टेयर क्षेत्र पर तुअर की बुवाई हुई है। वर्तमान में तुअर फसल फूल और फलियां बनने की अवस्था में है। इसी दौरान तुअर पर पत्तियां मोड़ने वाली सुंडी तथा मर रोग का प्रकोप देखा जा रहा है। इन दोनों के बढ़ते असर से तुअर उत्पादक किसानों की चिंताएं और बढ़ गई हैं।