लकड़ी-कोयले पर चलने वाला धुआं रहित चूल्हा (सौजन्य-नवभारत)
Wardha News: वर्धा जिले में ग्रामीण इलाकों में आम नागरिकों के लिए गैस सिलेंडर महंगाई का बोझ बनता जा रहा है। ऐसे समय में एक किसान पुत्र ने मेहनत और नवाचार के बल पर एक धूआं रहित चूल्हा विकसित किया है। लकड़ी, कोयला, कचरे जैसे ईंधन पर चलने वाला यह चूल्हा न केवल धुआं रहित है, बल्कि इसे बिजली या सौर ऊर्जा से चार्ज कर इस्तेमाल किया जा सकता है, यह एक आधुनिक उपकरण है।
आर्वी तहसील के कासारखेड़ा गांव के योगेश लिचडे नामक इस युवा किसान पुत्र ने अपनी हुनर से यह चूल्हा तैयार किया है। पारिवारिक स्थिति आर्थिक रूप से कमजोर थी और खेती से होने वाली आमदनी भी अपर्याप्त थी, जिसके चलते योगेश ने एक नया रास्ता चुना। समय और पैसों की बचत हो, इस उद्देश्य से उसने शोध शुरू किया और कई प्रयोगों के बाद यह धुआं रहित चूल्हा बनाने में सफलता पाई।
योगेश को बचपन से ही नए-नए उपकरण बनाने में रुचि थी। इससे पहले वह ‘डवरनी यंत्र’, छोटा ट्रैक्टर, स्प्रे पंप, वीआईपी मचान जैसे कई उपकरण बना चुका है। इसी जोश के साथ उसने अब ग्रामीण महिलाओं की रोजमर्रा की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए धुआं रहित चूल्हा विकसित किया है।
पिछले कुछ वर्षों में गैस सिलेंडर के दाम आसमान छूने लगे हैं। हर महीने सिलेंडर खरीदना ग्रामीण परिवारों के लिए कठिन हो गया है। ऐसे समय में योगेश द्वारा बनाया गया यह धुआं रहित चूल्हा महिलाओं के लिए एक वरदान साबित हो सकता है।
केवल ₹25 से ₹30 रुपए मासिक चार्जिंग खर्च में यह चूल्हा चलाया जा सकता है, जिससे हजारों रुपये की गैस की बचत होती है। ग्रामीण इलाकों में लकड़ी या कोयले से खाना बनाते समय निकलने वाले धुएं से महिलाएं अक्सर परेशान होती हैं। चूल्हे की धुआं रहित तकनीक उनके स्वास्थ्य की रक्षा करेगी। साथ ही, इससे खाना बनाते समय समय की भी बचत होती है।
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योगेश लिचडे ने बताया कि, यह चूल्हा ज्यादा से ज्यादा ग्रामीण परिवारों तक पहुंचे। इसी उद्देश्य से वे आने वाले महीनों में इसका उत्पादन बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। किसानों और ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से राहत मिले, इसके लिए उनका प्रयास लगातार जारी रहेगा।