शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे (डिजाइन फोटो)
Uddhav Thackeray Birthday Special: भारतीय राजनीति में कई ऐसे नेता हुए जिन्होंने अपनी विचारधारा से कभी समझौता नहीं किया। चाहे इसके लिए उन्हें सत्ता से दूर ही क्यों न जाना पड़ा हो। महाराष्ट्र की सियासत में भी ऐसे एक नेता हुए जिन्होंने मराठी मानुस और मराठी अस्मिता से कभी समझौता नहीं किया। बाल ठाकरे ने मराठी मानुस की लड़ाई लड़ने के लिए शिवसेना बनाई। राज्य में इन दिनों भी मराठी अस्मिता की लड़ाई लड़ी जा रही है। अब इसकी अगुवाई बाल ठाकरे के वंशज कर रहे हैं।
बाल ठाकरे के बेटे और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) प्रमुख और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का आज जन्मदिन है। इस अवसर पर उनके राजनीतिक सफर और पारिवारिक विरासत पर एक नज़र डालना ज़रूरी हो जाता है, खासकर जब बात कांग्रेस के साथ उनके गठबंधन की हो, जो उनके पिता बाल ठाकरे की विचारधारा के बिल्कुल विपरीत था।
शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे जीवन भर कांग्रेस के मुखर आलोचक रहे। उन्होंने कांग्रेस की नीतियों, खासकर उसकी “धर्मनिरपेक्षता” की राजनीति का विरोध किया और हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा दिया। यही वजह थी कि शिवसेना लंबे समय तक भाजपा की स्वाभाविक सहयोगी बनी रही।
लेकिन राजनीति में परिस्थितियां और प्राथमिकताएं बदलती रहती हैं। 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद, मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा के साथ खींचतान के बीच उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाने का एक आश्चर्यजनक फैसला लिया।
यह भी पढ़ें:- वो नेता जिसने इंदिरा के विरोध में छाेड़ा स्कूल, आज हैं सबसे अमीर सूबे के मुखिया
इस गठबंधन ने महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार की नींव रखी और उद्धव ठाकरे ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वह भी उन पार्टियों के समर्थन से जिनकी उनके पिता बाल ठाकरे दशकों से आलोचना करते रहे थे।
इस निर्णय को लेकर उद्धव ठाकरे को अपने ही समर्थकों और शिवसैनिकों के बीच आलोचना का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने इसे “महाराष्ट्र के हित में लिया गया निर्णय” बताया। उनका मानना था कि विचारधारा से ऊपर जनता और राज्य का कल्याण आता है।
आज, जब उद्धव ठाकरे अपना 65वां जन्मदिन मना रहे हैं, यह सवाल फिर से उठता है कि क्या सत्ता की राजनीति विचारधारा पर हावी हो गई है? या यह एक नए राजनीतिक युग की शुरुआत है, जहां सहयोग और समन्वय को प्राथमिकता दी जा रही है? एक ओर पिता की स्पष्ट विचारधारा, दूसरी ओर पुत्र की व्यावहारिक राजनीति, उद्धव ठाकरे की कहानी इसी द्वंद्व और संतुलन का उदाहरण है।