गिरीश महाजन व उद्धव ठाकरे (सोर्स: सोशल मीडिया)
मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति 5 जुलाई का दिन महत्वपूर्ण रहा। लगभग 20 साल बाद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक मंच पर आए। दोनों एक होने और मराठी के लिए की बात कही। लेकिन इसके अगले ही दिन भाजपा नेता उद्धव ठाकरे की पार्टी को लेकर बड़ा दावा किया है। जिससे राज्य की सियासत में हड़कंप मच गया है।
भारतीय जनता पार्टी के नेता और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री गिरीश महाजन ने रविवार को दावा किया कि शिवसेना (यूबीटी) के कई सांसद व विधायक उनके संपर्क में हैं तथा लोगों को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व पर भरोसा नहीं है।
गिरीश महाजन ने आरोप लगाया कि ठाकरे ‘पलटी बहादुर’ हैं और राज्य में त्रिभाषा नीति के कार्यान्वयन पर विवाद के बीच उनका आचरण अपरिपक्व है। उन्होंने यह भी दावा किया कि उद्धव ठाकरे ने 2019 में मुख्यमंत्री बनने की चाह में अपने पिता और शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की विचारधारा से भटककर अपना राजनीतिक भविष्य बर्बाद कर लिया।
उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे ने लगभग दो दशकों में पहली बार मुंबई में एक रैली में मंच साझा किया। राज और उद्धव ने यह कार्यक्रम भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति सरकार द्वारा राज्य के विद्यालयों में पहली कक्षा से हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पेश करने के लिए पूर्व में जारी किए गए दो सरकारी प्रस्तावों (जीआर) को वापस लेने का फैसला किए जाने के बाद आयोजित किया।
मंत्री गिरीश महाजन ने रविवार को सोलापुर में पत्रकारों से कहा कि आज भी उद्धव ठाकरे गुट के कई विधायक और सांसद मेरे संपर्क में हैं। उन्होंने कहा कि अगर आपको मेरी बात पर यकीन नहीं है, तो आप जल्द ही खुद ही यह देख लेंगे। उन्होंने दावा किया कि ठाकरे के नेतृत्व में लोगों को बिलकुल भी भरोसा नहीं है।
महाजन ने उद्धव ठाकरे को ‘पलटी बहादुर’ बताते हुए दावा किया कि उनका आचरण अपरिपक्व है। भाजपा नेता ने कहा कि ठाकरे ने मौजूदा सरकार का विरोध करने के लिए ही अपना रुख बदला है। आगामी जिला परिषद, पंचायत समिति और नगर निगम चुनावों के नतीजे बताएंगे कि प्रत्येक नेता पर जनता का कितना भरोसा है।
‘मैं हिंदी बोलता हूं’, जश्न के बाद बोले संजय राउत, कहा- राजनीति के लिए आए साथ
भाजपा नेता गिरीश महाजन ने उद्धव ठाकरे पर अपने पिता बाल ठाकरे की विचारधारा को त्यागने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उद्धव ने शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस से हाथ मिलाने के लिए बालासाहेब के हिंदुत्व को दरकिनार कर दिया। मुख्यमंत्री बनने की चाहत में उन्होंने अपना राजनीतिक भविष्य बर्बाद कर लिया है।