मिलिसेकंड पल्सर (सोर्स: सोशल मीडिया)
Indian Astronomers Discover News: पुणे के पास खोड़ाद-नारायणगांव स्थित उन्नत ज्वाइंट मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (uGMRT) की मदद से भारतीय खगोलविदों की टीम ने एक दुर्लभ मिलिसेकंड पल्सर की खोज की है। इस खोज का नेतृत्व नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (NCRA-TIFR) के शोध छात्र ज्योतिर्मय दास ने किया। यह पल्सर प्राचीन तारामंडल मैसिएर 80 (NGC 6093) में स्थित है।
नए पल्सर का नाम PSR J1617-2258A रखा गया है। यह पल्सर प्रति सेकंड 232 बार घूमता है और अपने हल्के साथी तारे के साथ केवल 19 घंटे में परिक्रमा पूरी करता है। इसकी कक्षा सामान्य गोलाकार न होकर उत्तल है। इसका इसेंट्रिसिटी मान 0.54 दर्ज किया गया है जो इसे बेहद असामान्य बनाता है।
इस पल्सर की कक्षा इतनी फैली हुई है कि वैज्ञानिकों ने इसकी कक्षा में होने वाले बदलाव का प्रत्यक्ष अवलोकन किया। यह वही प्रभाव है जिसकी भविष्यवाणी अल्बर्ट आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत में की गई थी। शोधकर्ताओं के अनुसार इस कक्षा में प्रतिवर्ष आधा डिग्री का बदलाव हो रहा है, यानी एक दिन में इसका बदलाव उतना होता है जितना ग्रह बुध की कक्षा में पूरे एक दशक में देखा जाता है।
एनसीआरए टीआईएफआर के वैज्ञानिक डॉ. जयंत रॉय के अनुसार, इतनी सघन कक्षा, उत्तल आकृति और हल्के साथी तारे के संयोजन से यह प्रणाली बहुत दुर्लभ बन जाती है। यह मिलिसेकंड पल्सर परिवार के विशेष हिस्से में आता है और इसके विकास की कहानी असाधारण हो सकती है।
वैज्ञानिक भास्वती भट्टाचार्य का कहना है कि इस पल्सर पर लगातार निगरानी से और भी सटीक आंकड़े सामने आएंगे। इससे न सिर्फ सापेक्षता सिद्धांत की नई पुष्टि होगी, बल्कि यह भी समझा जा सकेगा कि ग्लोब्यूलर क्लस्टर जैसे तारों की भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में नजदीकी गुरुत्वीय टकराव पल्सरों की कक्षाओं को कैसे प्रभावित करते हैं।
मिलिसेकंड पल्सर वास्तव में मृत तारों (neutron stars) के अवशेष होते हैं, जो अत्यंत सघन और छोटे आकार के बावजूद अविश्वसनीय गति से घूमते रहते हैं। ये पल्सर अंतरिक्ष में रेडियो तरंगों की किरणें फैलाते हैं (जैसे कोई कॉस्मिक लाइट हाउस)।
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वैज्ञानिक इन्हीं संकेतों को पकड़कर उनकी गति, कक्षा और द्रव्यमान का आकलन करते हैं। नए खोजे गए PSR J1617-2258A की विशेषता यह है कि यह तारों की भीड़ वाले क्षेत्र ‘ग्लोब्यूलर क्लस्टर’ में मौजूद है, जहां गुरुत्वीय खिंचाव और तारकीय टकराव असामान्य घटनाएं उत्पन्न करते हैं। इस पल्सर की खोज से वैज्ञानिकों को न केवल सापेक्षता सिद्धांत की कसौटी परखने का मौका मिलेगा।
बल्कि यह भी समझने का मौका मिलेगा कि ऐसे क्लस्टरों में तारों के बीच टकराव से पल्सर की कक्षा कैसे बदलती है। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय मानता है कि इस खोज से भविष्य में गुरुत्वाकर्षण तरंगों और ब्रह्मांड के विकास को समझने में भी नई दिशा मिलेगी।
यह खोज ग्लोब्यूलर क्लस्टर GMRT पल्सर सर्च परियोजना का हिस्सा है। इसमें भारत के NCRA-TIFR के साथ-साथ जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स, अमेरिका के नेशनल रेडियो एस्ट्रोनॉमी ऑब्जर्वेटरी और ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक शामिल हैं। यह उपलब्धि भारत की वैज्ञानिक क्षमता का प्रमाण है और ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।