पुणे गणेश पंडाल (pic credit; social media)
Pune Municipal Elections: पुणे नगर निकाय चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, शहर की सियासत का रंग भी गहराता जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण गणेशोत्सव के दौरान देखने को मिला, जहां महापौर पद के दावेदारों और चुनावी उम्मीदवारों ने गणेश मंडलों को खुले हाथों से दान देना शुरू कर दिया है।
शहर के छोटे-बड़े मंडलों को ₹11,000 से लेकर ₹1 लाख तक की राशि दान में दी जा रही है। खास बात यह है कि जिन मंडलों की लोकप्रियता जनता में ज्यादा है, वहां नेताओं ने मोटी रकम दान कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। चुनावी रणनीति के लिहाज से इसे जनता के बीच ‘नजदीकी बढ़ाने का सीधा तरीका’ माना जा रहा है।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि इस बार दान की राशि पहले से अधिक है। कई मंडल संचालक भी मानते हैं कि चुनावी साल में उन्हें बेहतर सहायता मिलती है, जिससे आयोजन की भव्यता और व्यवस्था में सुधार होता है। ढोल-ताशा, सजावट और प्रसाद वितरण जैसे आयोजनों में दान का पैसा सीधे खर्च किया जा रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि गणेश मंडल न केवल धार्मिक उत्सव का हिस्सा हैं बल्कि ये समाज में प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं। इसलिए नेताओं के लिए यह मंच जनता से जुड़ने का सबसे आसान रास्ता है। “गणेशोत्सव महाराष्ट्र की धड़कन है। यहां दिखाई देने वाले दान और मदद के संदेश चुनाव के वोटबैंक तक सीधा असर डालते हैं,” एक स्थानीय राजनीतिक जानकार ने कहा।
सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा चर्चा में है। कई लोग नेताओं के इस रवैये को सिर्फ चुनावी स्टंट मान रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि चाहे मकसद चुनावी हो या सामाजिक, अगर मंडलों को फायदा हो रहा है तो इसे सकारात्मक कदम ही माना जाना चाहिए।
गणेश मंडलों ने भी नेताओं का आभार व्यक्त किया है और कहा है कि इस तरह की मदद से आयोजन और भव्य तथा अनुशासित तरीके से किए जा सकते हैं। वहीं, आम जनता इसे नेताओं का ‘गणपति कनेक्शन’ मान रही है। साफ है कि इस बार का गणेशोत्सव सिर्फ भक्ति और उत्साह का नहीं बल्कि चुनावी रंगत का भी गवाह बन रहा है।