जि.प. चुनाव पर संकट (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Nashik News: स्थानीय स्वराज्य संस्था चुनावों के लिए घोषित आरक्षण सीमा के उल्लंघन के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका पर मंगलवार, 25 नवंबर को सुनवाई होने वाली है। ऐसे में यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या एक बार फिर जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव अधर में लटक जाएंगे? इच्छुक उम्मीदवारों के साथ-साथ मतदाताओं की निगाहें भी इस सुनवाई पर टिकी हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि मनपा, नगरपालिका, नगर पंचायत, जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनावों में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। लेकिन राज्य के कई क्षेत्रों में इस निर्देश की अनदेखी की गई है। इसी मुद्दे पर धुलिया के राहुल रमेश वाघ और किसनराव गवली ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
19 नवंबर को हुई पिछली सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों को सुना गया। राज्य सरकार और आयोग द्वारा अतिरिक्त समय मांगे जाने के कारण अब सुनवाई 25 नवंबर को होगी। चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, यदि सर्वोच्च न्यायालय आरक्षण को 50 प्रतिशत की सीमा में करने का आदेश देता है, तो जिला परिषद चुनाव कार्यक्रम न्यायालय के आगे के निर्णय पर निर्भर करेगा।
राज्य की 17 जिला परिषदों में ओबीसी आरक्षण के व्यापक लागू होने के कारण 50 प्रतिशत की सीमा पार हुई है, जिसमें नासिक जिला परिषद भी शामिल है। नासिकमें आरक्षण 72 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जिले की भौगोलिक संरचना, आदिवासी और गैर-आदिवासी तहसीलों के कारण यह सीमा बढ़ गई है। नियम के अनुसार 50 प्रतिशत आरक्षण के तहत 37 सीटें आरक्षित और 37 सामान्य होनी चाहिए थीं, लेकिन वर्तमान व्यवस्था के तहत 53 सीटें आरक्षित और केवल 21 सीटें सामान्य हैं।
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न्यायालय की अगली सुनवाई होने तक चुनाव आयोग जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा नहीं करेगा। साथ ही इन चुनावों के लिए अब तक चुनाव निर्णय अधिकारियों की नियुक्ति भी नहीं हुई है। इस संबंध में राजस्व विभाग से रिपोर्ट लंबित है। नियुक्त चुनाव निर्णय अधिकारी की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद ही चुनाव प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए माना जा रहा है कि नए जिला परिषद और पंचायत समिति के सदस्यों को पदभार संभालने के लिए जनवरी तक इंतजार करना पड़ सकता है।