नारायण राणे, राज- उद्धव ठाकरे (pic credit; social media)
Maharashtra Politics: लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को राज्य के मराठी वोटरों की सहानुभूति नहीं मिली। उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। ऐसे में उद्धव अब अपने चचेरे भाई और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे के साथ मिलकर मराठी और मुंबई के मुद्दे पर लौटने को तत्पर नजर आ रहे हैं।
दोनों भाइयों को उन्हीं के पूर्व साथी एवं बीजेपी नेता नारायण राणे ने आईना दिखाने का प्रयास किया है। मुंबई मनपा सहित अन्य स्थानीय निकायों के चुनाव से पहले बार-बार मुंबई पर मराठियों का पूरा हक होने का दम भर रहे उद्धव व राज को झटका देते हुए राणे ने स्पष्ट कर दिया है कि मुंबई सिर्फ मराठियों की नहीं है।
नारायण राणे ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा है कि मुंबई सिर्फ मराठी लोगों की नहीं है। मुंबई के विकास में सभी जाति एवं धर्मों के लोगों ने योगदान दिया है। उन्होंने आगे कहा कि मुंबई में उद्योग और बाजार मराठी लोगों ने नहीं बनाए। यहां रहनेवाले सभी लोगों ने इसमें योगदान दिया है। राणे ने कहा कि यह मुंबई बहुरंगी है। इस दौरान राणे ने राज उद्धव को ज्यादा महत्व देने की बजाय जनहित की खबरों को प्रसारित करने की नसीहत दी।
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केंद्र सरकार ने नई शिक्षा पॉलिसी के तहत पूरे देश के स्कूलों में पहली कक्षा से तीन भाषा पढ़ाने का फार्मूला लागू करने का निर्देश दिया है। महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने भी राज्य में पहली कक्षा से मराठी और अंग्रेजी के अलावा तीसरी भाषा के रूप में हिंदी अथवा देश की किसी अन्य एक भाषा को पढ़ाने के संबंध में सरकारी आदेश जारी किया था।
इसका मनसे एवं उद्धव की पार्टी शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे कई अन्य संगठन विरोध करने लगे। इसी के साथ मुंबई व आसपास क्षेत्रों में मराठी बोलने की जिद के कारण हिंदी भाषियों की पिटाई की सिलसिला शुरू हो गया था। बवाल बढ़ता देखकर सरकार ने सरकारी आदेश वापस ले लिया था। लेकिन उद्धव और राज ने मनपा चुनावों मराठी और मुंबई के मुद्दे पर ही लड़ने की तैयारी करते दिख रहे हैं।