हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
Nagpur News: बच्ची को जन्म देने के कारण मानसिक रूप से प्रताड़ित करने तथा दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए पत्नी ने पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस में दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए प्रतीक भानारकर और परिवार के सदस्यों द्वारा याचिका दायर की गई। इस पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पति के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई रद्द करने से इनकार कर दिया है, जबकि उसके माता-पिता और अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ एफआईआर को रद्द कर दिया है।
अदालत ने आदेश में यह टिप्पणी भी की कि पति के रिश्तेदारों को केवल इसलिए मामले में फंसा दिया गया क्योंकि वे उसके रिश्तेदार थे और उनके खिलाफ लगाए गए आरोप सामान्य और व्यापक प्रकृति के थे। पत्नी ने आरोप लगाया था कि शादी के कुछ दिनों बाद ही पति और ससुराल वालों ने उसे विभिन्न कारणों से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया जिसके कारण उसे अपना वैवाहिक घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
दोनों पक्षो की लंबी दलीलों के बाद कोर्ट ने आदेश में कहा कि पति के खिलाफ विशिष्ट आरोप हैं जिसमें बच्ची को जन्म देने के कारण पत्नी को मानसिक रूप से प्रताड़ित करना भी शामिल है। अदालत ने कहा कि यह मानसिक क्रूरता के दायरे में आ सकता है और इस स्तर पर पति के खिलाफ आरोप तय करने के लिए प्रथमदृष्टया पर्याप्त सबूत मौजूद हैं, इसलिए अदालत ने पति के खिलाफ एफआईआर रद्द करने की याचिका खारिज कर दी।
हालांकि अदालत ने पति के माता-पिता, भाई और भाभी के खिलाफ कार्रवाई को रद्द कर दिया। अदालत ने पाया कि इनके खिलाफ लगाए गए आरोप सामान्य और सर्वव्यापी थे। अदालत ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि पति के परिवार के सदस्यों को ऐसे मामलों में फंसाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इस संबंध में अदालत ने प्रीति गुप्ता बनाम झारखंड राज्य (2010) और कहकशां कौसर बनाम बिहार राज्य (2022) जैसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भी उल्लेख किया।
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इन फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498-ए के दुरुपयोग और वैवाहिक विवादों में पति के रिश्तेदारों को फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने आगाह किया था कि जब रिश्तेदारों के खिलाफ प्रथमदृष्टया कोई मामला नहीं बनता है तो अदालतों को उनके खिलाफ कार्रवाई करने से बचना चाहिए। इस आधार पर हाई कोर्ट ने पति प्रतीक भानारकर को छोड़कर बाकी सभी रिश्तेदारों के खिलाफ एफआईआर रद्द करने का आदेश दिया।