यूजीसी नियम स्थानीय स्टैच्यूट पर प्रभावी (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Nagpur News: असंतोषजनक प्रदर्शन का हवाला देते हुए सेवाएं समाप्त किए जाने और यूनिवर्सिटी और कॉलेज ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती देते हुए डॉ। शशिकांत खंडारे की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई। इस पर हाई कोर्ट की ओर से महत्वपूर्ण फैसला सुनाया गया। फैसले के अनुसार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) विनियम 2010 प्रोबेशन अवधि से संबंधित मामलों में राष्ट्र संत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के स्टैच्यूट 53 के प्रावधानों पर प्रभावी होंगे।
इसके अनुसार याचिकाकर्ता की सेवा समाप्ति के आदेश को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया। याचिकाकर्ता को 19 जून 2013 को डोंगरगांव स्थित वी।एम। इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त किया गया था। यह संस्थान सेमाना विद्या वा वान विकास प्रशिक्षण मंडल द्वारा चलाया जाता है। याचिकाकर्ता ने एक वर्ष से अधिक समय तक कार्य किया। इसके बाद 1 दिसंबर 2014 को सोसाइटी ने ‘असंतोषजनक प्रदर्शन’ के आधार पर 10 दिसंबर 2014 से उनकी सेवाएं समाप्त कर दी थीं।
संस्थान के आदेश को यूनिवर्सिटी और कॉलेज ट्रिब्यूनल में चुनौती दी गई थी। ट्रिब्यूनल ने स्टैच्यूट 53 (जो 2 साल की प्रोबेशन अवधि निर्धारित करता है) को आधार मानते हुए बर्खास्तगी को सही ठहराया था।
याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने हाई कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि नागपुर विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा निर्देशों के माध्यम से अपनाए गए यूजीसी विनियम 2010 लागू होते हैं। यूजीसी विनियम 11 के तहत प्रोफेसर के लिए प्रोबेशन अवधि केवल एक वर्ष निर्धारित है। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने 19 जून 2013 को नियुक्ति के बाद एक वर्ष पूरा कर लिया था। यूजीसी विनियमों के अनुसार एक वर्ष पूरा होने पर उनकी सेवाएं स्थायी मानी जाती हैं।
वकील ने कहा कि एक बार स्थायी होने के बाद बिना किसी विभागीय जांच के बर्खास्त नहीं किया जा सकता था। दोनों पक्षों की दलीलों के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने 15 फरवरी 2011 के सरकारी प्रस्ताव (G।R।) के माध्यम से यूजीसी विनियम 2010 को लागू कर दिया था। महाराष्ट्र विश्वविद्यालय अधिनियम, 1994 की धारा 8 के आलोक में यह सरकारी प्रस्ताव स्टैच्यूट 53 पर प्रभावी होगा।
ये भी पढ़े: वर्धा जिले के विकास के लिए प्रयासरत ,पालकमंत्री पंकज भोयर का प्रतिपादन
इसके अलावा कुलपति द्वारा जारी और प्रबंधन परिषद द्वारा अनुमोदित निर्देश भी यूजीसी विनियमों को लागू करता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यूजीसी विनियम के अनुसार एक वर्ष की सेवा समाप्त होने पर प्रिंसिपल की सेवा स्वतः ही स्थायी हो जाती है, जब तक कि पहले वर्ष की समाप्ति से पूर्व विशिष्ट आदेश द्वारा प्रोबेशन अवधि को एक और वर्ष के लिए बढ़ाया न गया हो।