बॉम्बे हाई कोर्ट (सोर्स: सोशल मीडिया)
Shalarth ID Scam News: महाराष्ट्र के सनसनीखेज और बहुचर्चित शालार्थ आईडी घोटाले में हर दूसरे दिन कोई न कोई नया बखेड़ा उजागर हो रहा है। शालार्थ आईडी घोटाले के बवंडर का आलम यह है कि कुछ शिक्षकों की विभागीय जांच इस मामले के एक आरोपी को ही सौंप दी गई। इसका कड़ा विरोध करते हुए अब 30 शिक्षकों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है।
याचिका में जांच अधिकारी पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए सम्पूर्ण मामले की निष्पक्ष जांच कराने का आदेश देने का अनुरोध किया गया है। याचिकाकर्ताओं ने शिक्षा विभाग के उप संचालक (नागपुर डिवीजन) उल्हास नरड पर गंभीर पक्षपात का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ चल रही विभागीय जांच को किसी निष्पक्ष और उच्च अधिकारी को स्थानांतरित करने की मांग की है।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार उप संचालक उल्हास नरड पर खुद फर्जी शालार्थ आईडी बनाने का आरोप है। इस संबंध में साइबर पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। एफआईआर 12 मार्च, 2025 को दर्ज की गई थी।
जांच से पता चला कि उप संचालक उल्हास नरड ने कथित तौर पर अपने उपयोगकर्ता आईडी और पासवर्ड का उपयोग करके फर्जी शालार्थ आईडी बनाए थे।
जांच एजेंसी ने यह भी खुलासा किया है कि उन्होंने 632 शिक्षकों और गैर शिक्षण कर्मचारियों के फर्जी शालार्थ आईडी बनाए और सरकारी धन का दुरुपयोग किया। इस मामले में उल्हास नरड सहित 3-4 अन्य उप संचालक गिरफ्तार किए गए हैं।
इस मामले में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 318(4), 319(2), 336(3), 338, 340(1), 340(2) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 65(e) के तहत केस दर्ज किया गया है।
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याचिकाकर्ताओं ने 13 सितंबर, 2025 को ईमेल और स्पीड पोस्ट के माध्यम से राज्य सरकार, शिक्षा आयुक्त, शिक्षा उप संचालक, शिक्षणाधिकारी को एक निवेदन भेजा था जिसमें जांच को किसी निष्पक्ष और उच्च प्राधिकरण को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया था।
यह भी बताया गया है कि वर्ष 2017-18 के दौरान स्कूल अधिकारियों ने याचिकाकर्ताओं के मूल दस्तावेज और नियुक्ति पत्र जिला परिषद के प्राथमिक शिक्षणाधिकारी के मौखिक अनुरोध पर सौंप दिए थे। शिक्षणाधिकारी इन दस्तावेजों को वापस करने में विफल रहे हैं।
स्कूल अधिकारियों ने प्रतिवादियों को अपने मूल दस्तावेजों के संबंध में जानकारी प्रदान करने की पेशकश भी की थी लेकिन कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई। याचिका में जोर दिया गया है कि शिक्षण उप संचालक नरड के कार्यालय में पहले से ही सभी मूल रिकॉर्ड उपलब्ध हैं और उन्हें याचिकाकर्ताओं से दोबारा मांगने का कोई अधिकार नहीं है।