पुसद अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक (सोर्स: सोशल मीडिया)
Pusad Urban Bank Case: अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ. अभय जोगलेकर ने पुसद अर्बन कोऑपरेटिव बैंक नागपुर के चेयरमैन शरद मैंद को रिहा करने के न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के आदेश को बरकरार रखा है। मैंद की रिहाई के आदेश को चुनौती देते हुए क्राइम ब्रांच और पेन्मचा वर्मा की विधवा पत्नी अनुराधा वर्मा द्वारा दायर किए गए आपराधिक पुनरीक्षण आवेदनों को सत्र न्यायालय ने खारिज कर दिया।
जेएमएफसी कोर्ट ने कहा था कि अभियोजन पक्ष ने शरद मैंद को गिरफ्तार करने में भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1)1 और बीएनएसएस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन किया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अभियोजन एजेंसी ने 2 मुख्य बातों से विचलन किया।
आरोपी को 24 घंटे के भीतर कोर्ट के सामने पेश नहीं किया गया। साथ ही आरोपी और उसके रिश्तेदारों को गिरफ्तारी के लिखित आधार और कारण प्रदान नहीं किए गए। मैंद की ओर से अधि। प्रकाश नायडू के साथ मितेश बैस, होमेश चौहान, सुरभि (नायडू) गोडबोले और ध्रुव शर्मा ने पैरवी की।
शरद मैंद की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता प्रकाश नायडू ने न्यायालय को बताया कि क्राइम ब्रांच ने 17 सितंबर 2025 को सदर पुलिस स्टेशन में पेन्मचा वर्मा की विधवा की रिपोर्ट के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया था।
क्राइम ब्रांच के कर्मियों ने मैंद को औपचारिक रूप से 17 सिंतबर 2025 को दोपहर लगभग 2:32 बजे पुसद में हिरासत में लिया था, लेकिन उन्हें आधिकारिक तौर पर 18 सितंबर 2025 को तड़के 2:04 बजे गिरफ्तारी मेमो के माध्यम से गिरफ्तार दिखाया गया। इसके बाद मैंद को 18 सितंबर 2025 को दोपहर 3:30 बजे जेएमएफसी कोर्ट के समक्ष पेश किया गया, जो कि औपचारिक हिरासत के समय से 24 घंटे की अवधि के बाद था।
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अधिवक्ता नायडू ने कहा कि गिरफ्तारी की सूचना कथित तौर पर एक अमोल नामक व्यक्ति को दी गई थी, जो स्टेशन डायरी प्रविष्टियों के विपरीत था। इसके अलावा क्राइम ब्रांच ने मैंद और उनके रक्त संबंधियों को गिरफ्तारी के लिखित आधार जानबूझकर उपलब्ध नहीं कराए।
चूंकि गिरफ्तारी अवैध थी, इसलिए जेएमएफसी कोर्ट ने तुरंत आरोपी शरद मैंद को रिहा करने का निर्देश दिया था। क्राइम ब्रांच और अनुराधा वर्मा की ओर से तर्क दिया गया कि निचली अदालत का आदेश गलत था, लेकिन अधिवक्ता नायडू ने खंडन करते हुए कहा कि आरोपी को गिरफ्तारी के आधार की सूचना न दिए जाने के कारण वह अपने बचाव के मौलिक अधिकारों से वंचित था।