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मनपा चुनाव: उत्तर भारतीयों का ‘पश्चिम-नागपुर’ पैटर्न, सियासी दलों की बड़ी चिंता, कहा- जो समाज का…

North Indian community Nagpur: नागपुर मनपा चुनाव से पहले उत्तर भारतीय समाज ने पश्चिम नागपुर पैटर्न पूरे शहर में लागू करने का संकेत दिया, सभी राजनीतिक दल सतर्क।

  • By प्रिया जैस
Updated On: Dec 28, 2025 | 09:56 AM

नागपुर मनपा चुनाव (सौजन्य-सोशल मीडिया)

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Nagpur municipal Election: नागपुर मनपा चुनाव की सरगर्मी अब अपने चरम पर है। प्रमुख राजनीतिक दल जहां जाति के जुगाड़ में लगे हैं वहीं सिटी का उत्तर भारतीय समाज भी पूरे हौसले के साथ सभी प्रमुख दलों के फैसलों पर नजर गड़ाए हुए है।

उत्तर भारतीय समाज ने दो टूक चेतावनी दी है कि 2024 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह पश्चिम नागपुर में समाज ने खेला किया था, उसी पैटर्न को वह पूरे शहर में लागू करने जा रहा है। जाहिर है कि राजनीतिक दलों के निर्णायक नेतागण भी इस जोखिम को समझ रहे हैं और वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे कुछ भी गलत संदेश जाए।

विस चुनावों में दिखा था असर

वैसे तो पश्चिम नागपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र में 1990 के दशक से ही हिन्दी भाषियों और विशेष रूप से उत्तर भारतीयों का दबदबा रहा है। एक समय था जब पश्चिम नागपुर की सीट पर कांग्रेस के बड़े नेता गेव आवारी को पराजित करने के लिए दिलीप चौधरी को मैदान में उतारा गया था। बाद में यह प्रयोग मनपा चुनाव में 1992 में देखने को मिला जब स्थायी समिति के अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस प्रत्याशी नाना मोहोड़ को हराने के लिए उत्तर भारतीय पहलवान जंग बहादुर सिंह अखाड़े में थे।

उन्हें उतने ही वोट मिले थे जितने निर्दलीय रघुनाथ मालीकर की पार्षद के रूप में पारी शुरू करने के लिए पर्याप्त थे। 2024 के विधानसभा चुनाव में पूरे महाराष्ट्र में बीजेपी और महायुति के पक्ष में सुनामी चल रही थी लेकिन पश्चिम नागपुर की कहानी अलग थी। इस सीट पर बीजेपी की ओर से किसी मजबूत उत्तर भारतीय चेहरे को मैदान में उतारने की बात कही गई थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

परिणामस्वरूप प्रभाग-9, 10, 11 और 12 में बहुसंख्यक उत्तर भारतीयों ने ऐसा खेला किया कि कांग्रेस के प्रत्याशी विकास ठाकरे विजयी हो गए। यह खेल उत्तर नागपुर में भी हुआ जहां बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा।

समाज का अपना वोट बैंक

समाज ने विधानसभा चुनाव के ठीक पहले गिट्टीखदान चौक पर हुई एक सभा में नारा बुलंद किया था। जो समाज का, समाज उसका… इस नारे का असर यह हुआ कि अब उत्तर भारतीय समाज का अपना एक वोट बैंक हो गया है। विधानसभा चुनावों में उत्तर भारतीय झटके का असर सबसे ज्यादा बीजेपी को देखने को मिला।

शहर अध्यक्ष के रूप में दयाशंकर तिवारी की नियुक्ति को भी इसका असर बताया जा रहा है। सिर्फ बीजेपी ही नहीं, कांग्रेस ने भी अपनी संभावित प्रत्याशियों की सूची में हिन्दी भाषियों के नाम रखे हुए हैं। समाज भी अपने मजबूत होते वोट बैंक की बदौलत अब दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अपने लोगों को पावरफुल बनाने की रणनीति में लगा हुआ है।

इसी मिट्टी में जन्मे, हमारा अधिकार बराबर : शुक्ला

उत्तर भारतीय सभा के मुखिया रामप्रताप शुक्ला ने कहा कि हिन्दी भाषी समाज को पराया समझा जाता रहा है। उत्तर भारतीय वोटों की बदौलत सत्ता पाने वाले नेता अब तक यूज एंड थ्रो की रणनीति पर काम करते थे। हम भी महाराष्ट्र की पवित्र मिट्टी में ही जन्मे हैं। हमारी 3-4 पीढ़ियां यहां अपने दम पर समाज कार्य में लगी हैं।

इसलिए सत्ता में भी हमारा अधिकार भी बराबरी का बनता है। हर समाज चाहता है कि उसके अपने लोगों को मजबूती मिले। उत्तर भारतीय समाज ने हाल ही में एक बैठक कर यह तय किया है कि मजबूत और चरित्रवान सर्वदलीय उम्मीदवारों को पूरा साथ दिया जाएगा।

जब मौका मिला हमने कर दिखाया : मनीष त्रिवेदी

ब्राह्मण सेना फाउंडेशन के मुखिया मनीष त्रिवेदी ने कहा कि उत्तर भारतीय समाज किसी का अधिकार नहीं छीन रहा। हमें जब भी मौका मिला हमने अपना 100 प्रतिशत योगदान दिया। नागपुर ही नहीं, विदर्भ और महाराष्ट्र भर में समाज के लोग सामाजिक कार्यों में किसी से पीछे नहीं हैं।

यह भी पढ़ें – Vasai-Virar Elections: ‘ठाकुर’ के गढ़ में ‘राज’ की एंट्री, MNS और BVA मिलकर लड़ेंगे चुनाव, रखी शर्त

सिर्फ राजनीति में जानबूझकर पीछे रखे जाने की साजिश की जाती है। सत्ता में हिस्सेदारी देते समय भाषा, जाति और प्रांत का मुद्दा उठाया जाता है। यही वजह है कि समाज में यह भाव बढ़ा है कि जो नेता जैसा व्यवहार करेगा उसे बदले में वैसा ही जवाब मिलेगा।

उत्तर भारतीय समाज का असर

  • सिटी की सभी विधानसभा क्षेत्रों में नई-पुरानी बस्तियों में समाज फैला हुआ है।
  • पश्चिम नागपुर में तो इसकी संख्या निर्णायक है और करीब 6 प्रभागों में यह जीत-हार का फैसला अपने दम पर कर सकता है।
  • गिट्टी खदान से लेकर गोरेवाड़ा तक और पुलिस लाइन टाकली से लेकर गोधनी तक के इलाके को लोग यूपी (उत्तर-पश्चिम) भी कहते हैं।
  • पूर्व नागपुर में हिन्दी भाषी समाज को मिला दिया जाए तो उत्तर भारतीय समाज, जिसमें छत्तीसगढ़ी समाज भी शामिल है, का व्यापक असर है।
  • दक्षिण नागपुर में मानेवाड़ा, अयोध्यानगर, हुड़केश्वर और उसके आसपास के इलाकों में बड़ी संख्या में समाज के लोग हैं। इसी तरह उमरेड रोड के दिघोरी इलाके में भी समाज के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं।
  • मध्य नागपुर में बजरिया-हंसापुरी जैसे इलाके में उत्तर भारतीय समाज ज्यादा है तो गांधीबाग-इतवारी में हिन्दी भाषी समाज बहुतायत में है।
  • दक्षिण-पश्चिम नागपुर, मतलब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के विस क्षेत्र में भी इमामबाड़ा-जाटतरोड़ी, अजनी, पार्वतीनगर, रामेश्वरी, द्वारकापुरी और पंचाशी प्लाट इलाके में भी उत्तर भारतीय समाज बहुतायत में है।

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Published On: Dec 28, 2025 | 09:56 AM

Topics:  

  • Maharashtra
  • Maharashtra Local Body Elections
  • Nagpur
  • Nagpur News

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