रेत की कमी (फाइल फोटो)
Nagpur Maha Metro: महा मेट्रो को प्राकृतिक रूप से उपलब्ध रेत की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। इससे मेट्रो के द्वितीय चरण के निर्माण कार्य में बाधा आ गई है। इस कमी के कारण एजेंसी को चारों स्ट्रेच पर कुछ कार्यों को आंशिक रूप से रोकना पड़ा है जिससे प्रगति की समग्र गति धीमी हो गई है।
सूत्रों ने पुष्टि की है कि चल रहे निर्माण कार्यों के लिए उपलब्ध नदी की रेत का स्टॉक लगभग खत्म हो चुका है और शेष मात्रा केवल कुछ ही दिनों तक चलने की उम्मीद है। वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि रेत की आपूर्ति अनियमित रही है और हमारा मौजूदा स्टॉक लगभग समाप्त हो गया है। इस वजह से काम के कुछ हिस्सों को बीच में ही रोकना पड़ा है।
अधिकारियों ने खुलासा किया कि रेत की कमी का असर इसलिए देर से सामने आया क्योंकि लंबी बारिश के कारण निर्माण कार्य पहले ही धीमा हो गया था। इसके बाद दीपावली और छठ पूजा की छुट्टियों के कारण भी जमीनी स्तर पर काम कम हो गया क्योंकि कई मजदूर छुट्टी पर चले गए थे। अब जब काम पूरी क्षमता से फिर से शुरू हो रहा है तो रेत की कमी एक बार फिर से चर्चा में आ गई है जिससे अधिकारी त्वरित विकल्पों की तलाश कर रहे हैं।
महा मेट्रो के अधिकारियों ने कहा कि वैकल्पिक व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है। हमें विश्वास है कि पूर्ण पैमाने पर निर्माण कार्य जल्द ही फिर से शुरू हो जाएगा। पिछले 15 दिनों से इस संकट से निपटने के प्रयास जारी है। वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि वे निर्माण को जारी रखने के लिए वैकल्पिक सामग्री और रेत के वैकल्पिक स्रोतों का मूल्यांकन कर रहे हैं।
अधिकारी ने कहा कि हम एम-रेत और क्रश्ड रेत जैसे विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि बड़े पैमाने पर उपयोग से पहले सुरक्षा और टिकाऊपन के परीक्षण किए जा रहे हैं। नागपुर जिले सहित महाराष्ट्र के कई हिस्सों में हफ्तों से प्राकृतिक रूप से उपलब्ध रेत की लगातार कमी हो रही है।
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इस कमी ने आवासीय विकास से लेकर प्रमुख सार्वजनिक कार्यों तक, कई बुनियादी ढांचों और निर्माण परियोजनाओं को बाधित किया है।
हाल ही में राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा था कि महाराष्ट्र में रेत की कमी अगले 15 दिनों के भीतर कम होने की उम्मीद है। उन्होंने राजस्व विभाग ने 350 रेत घाटों की नीलामी की तैयारी पूरी कर ली है, जबकि राज्यभर में 500 से अधिक रेत डिपो पहले ही चालू किए जा चुके हैं।
उन्होंने कहा कि यह कमी अस्थायी थी और यह राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) द्वारा अनिवार्य वार्षिक 3 महीने के रेत उत्खनन प्रतिबंध (3० जून से 3० सितंबर) के कारण हुई थी। बावनकुले ने यह भी कहा कि सरकार प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भरता कम करने के लिए राज्य की एम-रेत नीति के तहत कृत्रिम रेत उत्पादन को बढ़ावा देने के प्रयासों को तेज कर रही है।