नगरधन शिवलिंग (सौजन्य-नवभारत)
Nagardhan Shivling: किले की भव्यता के साथ-साथ पर्यटकों को आकर्षित करने वाला नगरधन का एक और विशेष धार्मिक स्थल है। हेमाड़पंथी शैली में निर्मित कोटेश्वर मंदिर, जहां स्थित है विदर्भ का एकमात्र दुभंग (दो भागों में विभाजित) शिवलिंग। यह शिवलिंग न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी एक अद्भुत लोककथा भी है, जो भक्तों में आस्था का संचार करती है।
कहा जाता है कि प्राचीन काल में एक ग्वालिन महादेव की अटूट श्रद्धा से पूजा करती थी। रोज दूध बेचने से पहले वह मंदिर आकर शिवलिंग को थोड़ा दूध अर्पित करती थी। महादेव की कृपा से उसका दूध अच्छा बिकता और वह जल्दी घर लौट आती। यह देखकर अन्य ग्वालिनों को आश्चर्य होता, जबकि उसके पति को उस पर शक होने लगा। एक दिन पति ने भाला लेकर उसका पीछा किया।
पत्नी को जब यह पता चला कि पति उसे मारने आ रहा है, तो उसने भगवान शिव से शरण मांगी। तभी शिवलिंग बीच से फट गया और ग्वालिन उसमें समा गई। गुस्से में पति ने शिवलिंग पर भाला प्रहार किया, जिससे उसमें छेद हो गया, जो आज भी दिखाई देता है। मान्यता है कि वर्षों तक उस शिवलिंग में हाथ डालने पर ग्वालिन के बाल महसूस होते थे।
प्राचीन ‘सिंधुरागिरी पुराण’ में नगरधन (नंदीवर्धन) का महत्त्व बताया गया है। वैकुंठ, नंदीवर्धन और मेखला ये तीनों स्थान समान पुण्यदायक माने गए हैं। यहां सावन मास में भक्तों की भारी भीड़ रहती है, जबकि महाशिवरात्रि पर रामटेक तहसील की सबसे बड़ी यात्रा यहीं होती है। तीन दिन तक पूरा नगरधन ‘हर-हर महादेव’ के जयघोष से गूंजता है।
मंदिर के पास ही एक सुंदर तालाब है और आधा किलोमीटर दूर वाकाटक कालीन किला स्थित है। किले में दुर्गा देवी का मंदिर, बावड़ी और पुष्करणी नामक धार्मिक स्थल है। मंदिर में विशाल दो मंजिला हॉल, स्वच्छता सुविधाएं, पानी की व्यवस्था और जीर्णोद्धार कार्य पूरे हो चुके हैं। यहां विवाह जैसे धार्मिक कार्यक्रम भी होते हैं। मंदिर की देखरेख कोटेश्वर देवस्थान ट्रस्ट द्वारा की जाती है।
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नगरधन किले से जुड़े इतिहास में बताया जाता है कि यहां कभी नौ राज्यों ने शासन किया। शिवपुराण में उल्लेख है कि जब वाराणसी में शिवपुराण का वाचन हो रहा था, तब नगरधन का नंदी ध्यानपूर्वक सुन रहा था। पहले इस स्थान को ‘नंदिग्राम’ कहा जाता था, बाद में ‘नंदीवर्धन’ और अब ‘नगरधन’ के नाम से जाना जाता है।
– सुरेश धोपटे, अध्यक्ष कोटेश्वर देवस्थान, नगरधन।
कोटेश्वर मंदिर को तीर्थक्षेत्र का दर्जा प्राप्त है, लेकिन अपेक्षित विकास कार्य अभी बाकी हैं। यदि मंदिर से सटे तालाब के चारों ओर सीढ़ियां बनाकर बोटिंग सुविधा शुरू की जाए, तो श्रद्धालु और पर्यटक अधिक संख्या में आएंगे, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
– प्रशांत कामडी, पूर्व सरपंच, नगरधन।