ईवीएम मशीन (सौजन्य-IANS)
Municipal Elections: नागपुर महानगर पालिका चुनाव में इस बार खर्च का आंकड़ा रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचने की संभावना है। वर्ष 2012 और 2017 के चुनावों में उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा केवल ₹4 लाख रुपये तय थी, जिससे कई उम्मीदवारों को हिसाब मिलाने में मुश्किल आती थी। अब राज्य निर्वाचन आयोग ने “अ” श्रेणी महानगर पालिकाओं के लिए यह सीमा बढ़ाकर ₹15 लाख रुपये कर दी है। यानी पिछली बार की तुलना में 4 गुना अधिक।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, इस बार मनपा के 38 प्रभागों में कुल 151 सीटों के लिए चुनाव होंगे। प्रत्येक सीट पर औसतन 8 उम्मीदवारों के उतरने की संभावना है। इस हिसाब से उम्मीदवारों की कुल संख्या करीब 1,200 तक पहुंच सकती है। यदि प्रति उम्मीदवार ₹15 लाख रुपये का औसत खर्च माना जाए, तो कुल चुनावी खर्च 200 करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
फिलहाल मनपा चुनाव की तैयारी तेज हो चुकी है। प्रभागों का पुनर्गठन पूरा हो चुका है और अब 4 नवंबर तक आरक्षण तय करने की प्रक्रिया जारी है। इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग की मंजूरी ली जाएगी और अगले महीने आरक्षण अंतिम किया जाएगा।
निर्वाचन आयोग ने इस बार खर्च सीमा करीब 4 गुना बढ़ाकर उम्मीदवारों को राहत दी है। पहले जहां ₹4 लाख रुपये में प्रचार संभालना मुश्किल था वहीं अब ₹15 लाख रुपये की सीमा ने कई उम्मीदवारों को राहत दी है। खर्च सीमा तय होने के बाद अब उम्मीदवार अपने बजट की जुगाड़ में लग गए हैं।
पिछले 8 वर्षों में स्थानीय निकाय चुनाव नहीं हुए हैं। वर्ष 2017 में लगभग 850 उम्मीदवार मैदान में थे, जबकि 2012 में यह संख्या 1,237 थी। इस बार भी उम्मीदवारों की संख्या 1,200 के आस-पास पहुंचने की संभावना है। 38 प्रभागों में से 37 में 4 सदस्य और एक प्रभाग में 3 सदस्य होंगे। भाजपा, कांग्रेस और बसपा सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं।
यदि भाजपा शिवसेना या राकांपा को जगह नहीं देती, तो ये दोनों दल भी करीब 50-50 उम्मीदवार खड़े कर सकते हैं। यही स्थिति कांग्रेस के महा विकास आघाड़ी सहयोगियों की भी रहेगी। इसके अलावा वंचित बहुजन आघाड़ी, रिपब्लिकन पार्टी के विभिन्न गुट, मुस्लिम लीग, मनसे और कम्युनिस्ट पार्टी भी अपने उम्मीदवार उतारेंगी। साथ ही कई अपक्ष उम्मीदवार और “हवसे-गवसे” भी मैदान में उतर सकते हैं।
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नवंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित नोटबंदी के कारण वर्ष 2017 के निकाय चुनाव में उम्मीदवारों को खर्च का संतुलन बनाए रखना कठिन हुआ था। उस समय खर्च सीमा ₹4 लाख रुपये थी। पेट्रोल, पंडाल, प्रचार कार्यालय और सभाओं के खर्च में कटौती करनी पड़ी थी। नोटबंदी के बाद लोग आर्थिक संकट से जूझ रहे थे। इसलिए केवल कुछ उम्मीदवार ही बेहिसाब खर्च कर पाए।
कई ने अपने अतिरिक्त खर्च को “पार्टी खर्च” के रूप में दिखाकर हिसाब से बचने की कोशिश की थी। इस बार बढ़ी हुई खर्च सीमा के चलते बेहिसाब खर्च पर कुछ हद तक लगाम लगने की उम्मीद है। हालांकि राजनीतिक हलकों में यह भी चर्चा है कि कुछ उम्मीदवार अब अपना अतिरिक्त खर्च फिर से पार्टी के नाम पर दिखाने की रणनीति अपनाएंगे।
निर्वाचन आयोग द्वारा खर्च सीमा ₹15 लाख रुपये करना स्वागतयोग्य निर्णय है। इससे उम्मीदवारों को खर्च की उचित स्वतंत्रता मिलेगी और पारदर्शिता भी बढ़ेगी। साथ ही बेहिसाब खर्च पर रोक लग सकेगी।