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नागपुर. स्किल वर्कर के रूप में मान्यता प्रदान कर 464 सफाई कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन निर्धारित करने के लिए मनपा आयुक्त ने 28 दिसंबर 2015 को निर्देश जारी किए. किंतु बाद में इस आदेश पर रोक लगा दी गई, जबकि स्वास्थ्य अधिकारी ने केवल 54 कर्मचारियों को ही इसका लाभ देने के लिए 30 दिसंबर 2015 को आदेश जारी किया. किंतु 19 मार्च 2016 को आयुक्त ने पुन: आदेश जारी कर पहले के आदेश पर रोक लगा दी.
इसे चुनौती देते हुए मनोज धनविजय की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश अतुल चांदूरकर और न्यायाधीश उर्मिला जोशी ने सफाई कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन देने के संदर्भ में लिए गए फैसले पर 4 सप्ताह के भीतर अंतिम निर्णय करने के आदेश दिए. याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा कि तत्कालीन मनपा आयुक्त और स्वास्थ्य अधिकारी के 20 दिसंबर 2015 के आदेशों के अनुसार फरवरी 2016 से 54 कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन देना शुरू किया जाना था.
अदालत ने आदेश में स्पष्ट किया कि 28 दिसंबर 2015 और 19 मार्च 2016 के आदेशों पर आयुक्त ने पुनर्विचार करना चाहिए. 19 मार्च को पहले के आदेश पर रोक क्यों लगा दी गई? उस पर विचार कर अंतिम निर्णय लेना चाहिए. सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद उचित निर्णय लिया जाना चाहिए. यदि आदेश पर से रोक हटा दी जाती है तो 28 दिसंबर 2015 के आदेशों के अनुसार लाभ पाने के लिए याचिकाकर्ता दावा कर सकता है. इसके विपरीत यदि आदेश जारी किया जाता है तो याचिकाकर्ता इसके खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया के तहत चुनौती देने के लिए स्वतंत्र रहेगा.
अदालत ने आदेश में कहा कि तत्कालीन आयुक्त ने पहले तो 464 कर्मचारियों को स्कील लेबर के रूप में न्यूनतम वेतन देने का निर्णय लिया लेकिन बाद में स्वास्थ्य विभाग के 54 कर्मचारियों की ही सूची तैयार की गई. इस पर भी मार्च 2016 में रोक लगा दी गई जिससे याचिकाकर्ता का नुकसान हुआ है. रोक लगाने के लिए आयुक्त ने जो आदेश जारी किया, उसके अनुसार स्किल वर्कर की व्याख्या पर पुनर्विचार करना था लेकिन लंबा समय बीतने के बावजूद उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया. इस तरह से मामले को ज्यों का त्यों नहीं रखा जा सकता है. कुछ न कुछ निर्णय लेना जरूरी है. अत: हाई कोर्ट का आदेश प्राप्त होने के 4 सप्ताह के भीतर अंतिम निर्णय करने के आदेश अदालत ने दिए.