हाई कोर्ट (सौजन्य-सोशल मीडिया)
High Court: याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश अनिल पानसरे और न्यायाधीश सिद्धेश्वर ठोंबरे ने फैसले में तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि संबंधित अधिकारी ने यह आदेश बिना सोचे-समझे और बिना कोई ठोस कारण बताए पारित किया था। अत: 31 जुलाई, 2020 को राज्य सरकार की ओर से जारी आदेश रद्द कर दिया। शर्मा पत्नी की हत्या के आरोप में 2003 से आजीवन कारावास की सजा काट रहा है।
उसे आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 498-A (दहेज प्रताड़ना) के तहत दोषी ठहराया गया था। उसने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 432 के तहत अपनी समय पूर्व रिहाई के लिए याचिका दायर की थी जिसे सरकार ने 31 जुलाई, 2020 के एक आदेश के जरिए यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उसकी रिहाई 22 साल की कैद पूरी होने पर होगी।
अदालत ने मामले को वापस सरकार के पास भेज दिया है और निर्देश दिया है कि निचली अदालत से नई रिपोर्ट मिलने के 6 सप्ताह के भीतर कानून के अनुसार नए सिरे से फैसला लिया जाए। अदालत ने कहा कि दोषी की पत्नी को प्रताड़ित करने का मकसद कीमती चीजें हासिल करना था। ऐसे में वह अपनी पत्नी को जान से मारना नहीं चाहता होगा।
अदालत ने आदेश में स्पष्ट किया कि संबंधित अधिकारी ने यह तय करने के लिए न तो मामले के तथ्यों की ठीक से जांच की और न ही निचली अदालत के सबूतों और निष्कर्षों को देखा। आदेश में इस बात का कोई कारण नहीं बताया गया कि याचिकाकर्ता को श्रेणी 2(ए) के बजाय 2(बी) में क्यों रखा गया। अदालत ने यह भी पाया कि आदेश पारित करते समय दोषी ठहराने वाली सत्र न्यायालय की राय पर भी विचार नहीं किया गया जो कि एक कानूनी अनिवार्यता है।
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सरकार के 15 मार्च, 2010 के दिशानिर्देशों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में दोषियों को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है।
सरकार ने गणेश शर्मा को श्रेणी 2(बी) में रखा था। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ए.वाई. शर्मा ने दलील दी कि अभियोजन पक्ष ने कभी यह साबित नहीं किया कि हत्या पूर्व नियोजित थी। इसलिए गणेश को श्रेणी 2(ए) में रखा जाना चाहिए था। वहीं सरकारी वकील ने कहा कि दोषी अपनी पत्नी को दहेज के लिए लगातार प्रताड़ित करता था जो यह साबित करने के लिए काफी है कि हत्या सोची-समझी साजिश थी।