कन्या विद्यालय (सौजन्य-IANS कंसेप्ट फोटो)
Girls School in Nagpur: कन्या विद्यालयों में कम होती लड़कियों की संख्या को ध्यान में रखते हुए शिक्षा विभाग ने राज्य में लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग स्कूलों को एकत्रित करने का निर्णय लिया है। इस संबंध में एक निर्णय हाल ही में जारी किया गया। सरकार ने कन्या विद्यालयों के संबंध में पिछले सरकारी निर्णय को रद्द करने की भी घोषणा की।
इस निर्णय के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि राज्य में अब लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग स्कूलों की अनुमति नहीं होगी। इससे भविष्य में कन्या विद्यालयों की अवधारणा अतीत की बात हो जाएगी। सरकार ने प्राथमिक शिक्षा के साथ-साथ माध्यमिक शिक्षा के विस्तार और विकास के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण निर्णयों पर अमल शुरू कर दिया है।
इसी तर्ज पर राज्य सरकार ने बालिका शिक्षा को प्राथमिकता देने के लिए कन्या विद्यालयों की अवधारणा को लागू किया लेकिन कुछ दिन पहले इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका पर आए फैसले में आदेश दिया गया था कि अब से कन्या विद्यालयों को अलग से अनुमति नहीं दी जाएगी। इसलिए राज्य सरकार इन विद्यालयों को सह-शिक्षा विद्यालयों में परिवर्तित करने के लिए एक नीति बनाने पर विचार कर रही थी।
नए फैसले के अनुसार यदि राज्य में एक ही परिसर में लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग स्कूल हैं तो उन्हें विलय करके सह-शिक्षा स्कूलों में बदलने का सुझाव दिया गया है। साथ ही शिक्षा आयुक्त को इस फैसले को लागू करने का अधिकार दिया गया है। शिक्षा आयुक्त को मौजूदा अलग-अलग स्कूलों को सह-शिक्षा स्कूलों में बदलने के प्रस्तावों को मंजूरी देने का भी अधिकार दिया गया है।
राज्य में लगभग 15,000 कन्या विद्यालय हैं। नागपुर जिले में करीब सभी तरह की 3900 स्कूलें है। इनमें कन्या विद्यालयों की संख्या करीब 100 हैं। इससे पहले कन्या विद्यालयों के संबंध में 2003 और 2008 में सरकारी फैसले जारी किए गए थे। इन दोनों फैसलों को भी रद्द कर दिया गया है।
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सह-शिक्षा समानता का वातावरण बनाती है। यह लड़के और लड़कियों के बीच आपसी समझ को बढ़ाती है और स्वस्थ सामाजिक संचार कौशल को बढ़ावा देती है। यह शिक्षा छात्रों को स्कूल के बाद आने वाली विविध वास्तविक दुनिया के लिए तैयार करती है। सह-शिक्षा शैक्षणिक और पाठ्येतर गतिविधियों में संतुलित भागीदारी को भी बढ़ावा देती है। इसके पीछे उद्देश्य स्कूली उम्र के दौरान लैंगिक भेदभाव को रोकना और यह सुनिश्चित करना है कि लड़के और लड़कियों को एक साथ पढ़ने का अवसर मिले जिससे उनके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास को बढ़ावा मिले।