सरकार को हाई कोर्ट की फटकार (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Nagpur News: राज्य सरकार की ओर से भले ही राज्य के किसानों को कर्ज माफी दिए जाने का दावा किया जा रहा हो, किंतु वास्तविकता यह है कि कई किसान अभी भी कर्ज माफी के इंतजार में है। इसका खुलासा उस समय हुआ, जब सेंट्रल कृषक सेवा सहकारी समिति की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान स्वयं याचिकाकर्ता ने कोर्ट को जानकारी दी। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि “छत्रपति शिवाजी महाराज शेतकरी सम्मान योजना-2017” की घोषणा कर जल्द ही किसानों को कर्ज माफी देने का वादा किया गया था।
किंतु 2017 से याचिकाकर्ता समिति के सदस्य किसान इस कर्ज माफी से वंचित है। मामले को गंभीरता से लेते हुए हाई कोर्ट ने जहां किसानों के साथ सरकार के इस रवैये पर कड़ी फटकार लगाई, वहीं 3 माह के भीतर पात्र किसानों को योजना का लाभ देने के सख्त आदेश भी दिए। हाई कोर्ट के इस आदेश से 7 वर्ष से अधिक समय से कर्जमाफी का इंतजार कर रहे किसानों को बड़ी राहत मिलने जा रही है।
अदालत ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि आदेश का पालन नहीं किया गया तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जा सकती है। याचिका में कहा गया था कि सरकार ने 2017 में फसल खराब होने, सूखे और किसानों की आत्महत्या जैसे संकटों से निपटने के उद्देश्य से यह योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत याचिकाकर्ता समिति के 248 सदस्य किसान लाभ पाने के पात्र पाए गए थे।
मामले की सुनवाई के दौरान न्या. अनिल किलोर और न्याय. रजनीश व्यास ने कहा कि सरकार ने अपने हलफनामे में यह स्वीकार किया है कि समिति के सदस्य लाभ के पात्र हैं। सरकार के अनुसार, इनमें से 229 सदस्यों को 1,50,000 रुपये तक और शेष 19 सदस्यों को 25,000 रुपये तक की कर्जमाफी मिलनी है। सरकार ने किसानों की पात्रता या उनके दावे पर कोई विवाद नहीं किया, फिर भी 7 वर्ष बीत जाने के बाद भी उन्हें लाभ नहीं दिया गया, जिसने समिति को अदालत का दरवाजा खटखटाने पर मजबूर किया।
सरकार ने भुगतान में देरी के लिए योजना के पोर्टल से संबंधित विभिन्न तकनीकी समस्याओं का हवाला दिया। सरकार ने अपने हलफनामे में बताया कि 27 मार्च 2024 को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी, जिसमें महाआयटी (MahaIT) को पात्र लाभार्थियों की एक सटीक “ग्रीन लिस्ट” तैयार करने के लिए कहा गया था।
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सरकार ने कहा कि महाआयटी का प्रस्ताव स्वीकृत होने के बाद वित्त विभाग की मंजूरी से बजट का प्रावधान किया जाएगा और फिर भुगतान होगा। अदालत ने इस दलील को पूरी तरह से खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने देरी के लिए कोई ठोस कारण नहीं दिया है। अदालत ने कहा कि तकनीकी कारणों का हवाला देकर सरकार केवल लाभ देने में देरी कर रहे हैं, जिससे पात्र किसान अपने अधिकारों से वंचित हो रहे हैं।
कोर्ट ने आदेश में स्पष्ट किया कि आदेश की तारीख से 3 महीने के भीतर सभी पात्र किसानों को लाभ का भुगतान किया जाए। साथ ही आदेश के पालन की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। यदि भुगतान करने में विफल रहते हैं, तो अधिकारियों को एक हलफनामा दायर कर यह बताना होगा कि भुगतान क्यों नहीं किया गया और इतने वर्षों की देरी का कारण क्या था।
अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं पाया गया, तो वह संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जा सकती है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि गैर-अनुपालन की स्थिति में दायर किए जाने वाले हलफनामे में उन अधिकारियों के नामों का खुलासा किया जाना चाहिए, जिनके खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया जा सके।