जस्टिस बीआर गवई (सोर्स- सोशल मीडिया)
Mumbai News In Hindi: देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा कि अनुसूचित जाति समुदाय में क्रीमी लेयर के सिद्धांत का समर्थन करने के चलते उन्हें अपने ही समाज के लोगों की आलोचना का सामना करना पड़ा।
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर उनकी राय को कई लोगों ने गलत समझा, जबकि उनका उद्देश्य सामाजिक न्याय की दिशा में संतुलित और व्यावहारिक दृष्टिकोण सुझाना था। जस्टिस गवई ने डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि बाबा साहेब सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) को उन व्यक्तियों को साइकिल देने जैसा मानते थे, जो सामाजिक रूप से पीछे रह गए हों। उनका कहना था कि यह सहायता उन्हें आगे बढ़ने और बराबरी पर आने के लिए दी जाती है, न कि हमेशा के लिए संरक्षित विशेषाधिकार के रूप में।
गवई ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति दसवें किलोमीटर पर है और कोई शून्य किलोमीटर से यात्रा शुरू कर रहा है, तो पीछे छूटे व्यक्ति को साइकिल देना आवश्यक है ताकि वह तेजी से आगे बढ़ सके और बराबरी की स्थिति तक पहुंच सके। उन्होंने कहा कि जब दोनों बराबरी पर आ जाते हैं, तो उन्हें साथ चलने का अवसर मिलना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि ऐसे में यह स्वाभाविक है कि जो लोग अब काफी आगे बढ़ चुके हैं, उन्हें सुरक्षा चक्र छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए, ताकि जो लोग अब भी शुरुआती पायदान पर हैं, उन्हें भी सामाजिक-आर्थिक रूप से ऊपर आने का अवसर मिल सके। जस्टिस गवई के अनुसार, डॉ. आंबेडकर का उद्देश्य मूल रूप से समाज में वास्तविक सामाजिक और आर्थिक न्याय स्थापित करना था।
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जस्टिस गवई ने जोर देकर कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह जरूरी है कि सकारात्मक कार्रवाई के लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचें और ऐसी नीतियों का उद्देश्य समाज में संतुलित प्रगति सुनिश्चित करना हो।