सीजेआई बीआर गवई को सम्मानित करते महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री (सोर्स: एक्स@MahaDGIPR)
मुुंबई: महाराष्ट्र विधानमंडल ने न्यायपालिका के शीर्ष पद पर पदोन्नत होने पर भारत के प्रधान न्यायाधीश भूषण गवई को मंगलवार को बधाई दी। विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने बधाई प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि गवई की नियुक्ति गर्व की बात है। प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। बाद में राज्य विधान परिषद में भी इसके अध्यक्ष राम शिंदे द्वारा इसी प्रकार का बधाई प्रस्ताव पेश किया गया जिसे उच्च सदन ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया। मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने भी न्यायमूर्ति गवई का अभिनंदन किया।
महाराष्ट्र के अमरावती में 24 नवंबर, 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति गवई को 14 नवंबर, 2003 को बंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। वह 12 नवंबर, 2005 को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने। उन्होंने 14 मई को भारत के 52वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में शपथ ली।
एक देश आणि सर्वसमावेशक एकाच राज्यघटनेसाठी डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांनी ठाम भूमिका घेतली. यामुळेच जात, धर्म बाजूला ठेवत न्यायदानात आणि सर्व बाबतीत देश एकसंध राहण्यास मदत मिळाली आहे. देशाने राज्यघटनेचा अमृत महोत्सवी कार्यकाल पूर्ण केला आहे. गेल्या ७५ वर्षांच्या कालखंडामध्ये… pic.twitter.com/bjrxczQi5b
— MAHARASHTRA DGIPR (@MahaDGIPR) July 8, 2025
महाराष्ट्र विधानमंडल द्वारा अपना अभिनंदन किए जाने के बाद प्रधान न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने कहा कि डॉ. बी आर आंबेडकर ने संविधान की सर्वोच्चता की बात की थी और उनका मानना था कि न्यायपालिका को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका ने पिछले 75 वर्षों में भारत में सामाजिक-आर्थिक समानता लाने के लिए मिलकर काम किया है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे संविधान अपनी शताब्दी की ओर बढ़ रहा है, उन्हें खुशी है कि वह न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा रहे हैं।
न्यायमूर्ति गवई ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि हम सभी संविधान की सर्वोच्चता में विश्वास करते हैं, जो शांति और युद्ध के दौरान देश को एकजुट रखेगा। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि संविधान तीनों अंगों – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को अधिकार देता है तथा आंबेडकर के अनुसार न्यायपालिका को नागरिकों के अधिकारों की प्रहरी और संरक्षक के रूप में काम करना है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आंबेडकर ने यह भी कहा था कि न्यायपालिका को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए। उन्होंने आंबेडकर के इस कथन को भी उद्धृत किया कि संविधान स्थिर नहीं रह सकता, इसे जीवंत होना चाहिए तथा निरंतर विकसित होते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि चूंकि अगली पीढ़ी को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, उनका अनुमान वर्तमान पीढ़ी नहीं लगा सकती, इसलिए संशोधनों की अनुमति दी गई।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि संविधान के कारण ही महिलाएं और पिछड़े समुदाय राष्ट्रीय मुख्यधारा में आए हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास एक महिला प्रधानमंत्री, दो महिला राष्ट्रपति तथा राष्ट्रपति के रूप में पिछड़े समुदाय से आने वाले के. आर. नारायणन और रामनाथ कोविंद, लोकसभा अध्यक्ष के रूप में जी एम सी बालयोगी और मीरा कुमार तथा विभिन्न राज्यों में मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशकों के रूप में पिछड़े वर्ग के कई सदस्य हैं।
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प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह महाराष्ट्र विधानमंडल द्वारा दिए गए सम्मान से अभिभूत हैं, क्योंकि उनके पिता आर एस गवई 30 साल से अधिक समय तक राज्य विधान परिषद से जुड़े रहे। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) के नेता आर एस गवई ने महाराष्ट्र विधान परिषद के अध्यक्ष होने के अलावा बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया।