पूर्व CJI बी.आर. गवई (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Mumbai University Event: भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा कि अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ सिद्धांत लागू किए जाने की वकालत करने पर उन्हें अपने ही समुदाय के लोगों की “व्यापक आलोचना” का सामना करना पड़ा। मुंबई विश्वविद्यालय में ‘समान अवसर को बढ़ावा देने में सकारात्मक कदम की भूमिका’ विषय पर आयोजित व्याख्यान के दौरान गवई ने कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचार में सकारात्मक कार्रवाई, पीछे रह गए व्यक्ति को आगे लाने के लिए साइकिल देने जैसा है।
लेकिन क्या आंबेडकर ने यह सोचा था कि वह व्यक्ति साइकिल कभी छोड़कर आगे न बढ़े? ऐसा नहीं था। उन्होंने कहा कि आंबेडकर वास्तविक अर्थों में सामाजिक व आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना चाहते थे, न कि केवल औपचारिक रूप से।
गवई ने स्पष्ट किया कि क्रीमी लेयर सिद्धांत के अनुसार, किसी पिछड़े वर्ग में आर्थिक व सामाजिक रूप से सक्षम लोग आरक्षण लाभ के पात्र नहीं होने चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी मामले में इस सिद्धांत को प्रतिपादित किया था। एक अन्य फैसले में उन्होंने स्वयं यह कहा था कि यह सिद्धांत अनुसूचित जातियों पर भी लागू होना चाहिए।
उन्होंने बताया कि इस टिप्पणी के बाद उन पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने आरक्षण का लाभ लेकर ऊँचे पद तक पहुँचने के बाद अब दूसरों को इससे वंचित करने की बात कही है। इस पर गवई बोले “लोगों को यह तक नहीं पता कि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में कोई आरक्षण नहीं होता।”
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उन्होंने आगे कहा कि 75 वर्षों में समाज में सकारात्मक बदलाव आए हैं। अनुसूचित जाति समुदाय के कई लोग मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, राजदूत और उच्चायुक्त जैसे ऊँचे पदों पर पहुँच चुके हैं।महाराष्ट्र को सामाजिक सुधारकों की भूमि बताते हुए उन्होंने फुले दंपति के योगदान को याद किया और कहा कि “जब महिलाएँ सबसे अधिक उत्पीड़न झेल रही थीं, तब ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले ने उनके लिए शिक्षा के द्वार खोले।”
(एजेंसी इनपुट के साथ)