सुप्रिया सुले, शरद पवार व अजित पवार (डिजाइन फोटो)
Bombay High Court On Lavasa Illegal Permission Case: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) के प्रमुख शरद पवार, सांसद सुप्रिया सुले और उपमुख्यमंत्री व एनसीपी प्रमुख अजित पवार को बॉम्बे हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। अदालत ने वकील नानासाहेब जाधव की उस याचिका को ठुकरा दिया है, जिसमें लवासा परियोजना के लिए दी गई अनुमतियों में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की मांग की गई थी।
बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अनखड़ की पीठ ने सोमवार को इस मामले पर अपना फैसला सुनाया। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता नानासाहेब जाधव ऐसा कोई ठोस कानूनी प्रावधान पेश करने में विफल रहे, जिसके तहत कोई अदालत अपने दीवानी क्षेत्राधिकार का उपयोग करते हुए पुलिस को प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने का निर्देश दे सके। जाधव ने अपनी जनहित याचिका में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि वह पुणे जिले के लवासा में हिल स्टेशन निर्माण के लिए दी गई कथित अवैध अनुमतियों के संबंध में पवार परिवार के खिलाफ मामला दर्ज करे।
यह कानूनी विवाद काफी समय से चल रहा है। इससे पहले फरवरी 2022 में भी जाधव ने लवासा को दी गई विशेष अनुमतियों को अवैध घोषित करने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी, जिसे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। हालांकि, उस समय अदालत ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा था कि ऐसा प्रतीत होता है कि शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले ने अपने प्रभाव और दबदबे का थोड़ा इस्तेमाल किया है। इसके बावजूद, अदालत ने तब भी इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।
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याचिकाकर्ता जाधव के अनुसार, उन्होंने दिसंबर 2018 में ही पुणे पुलिस आयुक्त के पास इस मामले की जांच के लिए शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके कारण उन्हें 2023 में नई जनहित याचिका के जरिए सीबीआई जांच की मांग करनी पड़ी। दूसरी ओर, शरद पवार ने इस साल मार्च में एक हस्तक्षेप याचिका दायर कर जाधव की याचिका का कड़ा विरोध किया था।
पवार का दावा था कि याचिकाकर्ता बार-बार एक ही तरह के या समान आरोप लगाकर कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहे हैं।अदालत का यह फैसला उस स्थिति जैसा है जहाँ किसी पुराने बंद अध्याय को फिर से खोलने की कोशिश की गई, लेकिन पर्याप्त कानूनी आधार न होने के कारण न्याय के द्वार पर उसे फिर से विराम दे दिया गया।