अनिल अंबानी (pic credit; social media)
Anil Ambani Account Fraud: मुंबई में बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के उस आदेश को बरकरार रखा है जिसमें उद्योगपति अनिल अंबानी और रिलायंस कम्युनिकेशंस के ऋण खातों को धोखाधड़ी (फ्रॉड) के रूप में घोषित किया गया था। न्यायमूर्तियों रेवती मोहिते डेरे और नीला गोखले की पीठ ने 3 अक्टूबर को अंबानी की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने 13 जून 2025 के SBI आदेश को चुनौती दी थी।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बैंक की कार्रवाई पूरी तरह तर्कसंगत थी और इसमें कोई कानूनी दोष नहीं था। अंबानी ने तर्क दिया था कि उन्हें व्यक्तिगत सुनवाई नहीं दी गई और दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए। कोर्ट ने यह तर्क खारिज करते हुए कहा कि आरबीआई के मास्टर निर्देशों के तहत उधारकर्ता को केवल लिखित प्रतिनिधित्व का अधिकार है, व्यक्तिगत सुनवाई का नहीं।
न्यायालय ने आगे कहा कि SBI ने अंतिम संवाद का उत्तर न मिलने के बाद ही खाते को फ्रॉड के रूप में वर्गीकृत किया। कोर्ट ने यह भी कहा कि अंबानी ने व्यक्तिगत सुनवाई का कभी अनुरोध नहीं किया। इसलिए, बैंक ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए उन्हें लिखित रूप में पर्याप्त अवसर दिया।
कोर्ट के फैसले में यह भी उल्लेख किया गया कि अंबानी की याचिका में कोई आधार नहीं था। SBI के निर्णय में कोई कमजोरी नहीं पाई गई और इसलिए बैंक का आदेश वैध और तर्कसंगत माना गया।
इस फैसले के बाद अनिल अंबानी और रिलायंस कम्युनिकेशंस के खातों पर फ्रॉड की स्थिति जारी रहेगी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्राकृतिक न्याय का पालन संतोषजनक रूप से किया गया और बैंक के फैसले को चुनौती देने का कोई ठोस आधार नहीं है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला वित्तीय संस्थाओं के अधिकार और बैंकिंग नियमों की शक्ति को मजबूत करता है। अंबानी की याचिका खारिज होने से स्पष्ट संदेश गया कि बड़े उद्योगपति भी नियमों के दायरे से बाहर नहीं हैं।
इस तरह, बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक बार फिर बैंकिंग प्रक्रिया और फ्रॉड की पहचान के मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण को मजबूत करते हुए स्पष्ट कर दिया कि नियम और प्रक्रिया सभी के लिए समान हैं।