मनसे नेता संदीप देशपांडे ने सीएम फडणवीस को दी चेतावनी
मुंबई: प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने के संदर्भ जारी किए गए महायुति सरकार के नए ‘जीआर’ जारी के कारण महाराष्ट्र की राजनीति में घमासान मच गया है। सरकार का कहना है कि नए ‘जीआर’ से ‘अनिवार्य’ शब्द हटा लिया गया है। इसलिए मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी को अनिवार्य नहीं किया गया है। छात्रों को तीसरी भाषा चुनने की आजादी होगी। लेकिन विपक्ष खासकर राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) राज्य सरकार के निर्णय का तीखा विरोध कर रही है।
मनसे का आरोप है कि घुमा-फिराकर छात्रों पर हिंदी थोपी जा रही है। मनसे के नेता संदीप देशपांडे ने शुक्रवार को सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि जोर जबरदस्ती की गई तो उग्र आंदोलन होगा। मनसे सड़कों पर उतर कर इस फैसले का विरोध करेगी।
हिंदी का विरोध सड़कों पर
गुरुवार को षणमुखानंद हॉल में शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे (यूबीटी) पार्टी के स्थापना दिवस के मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने खुलकर राज के साथ गठबंधन के प्रति सकारात्मक संकेत दिए। उन्होंने पार्टी के पदाधिकारियों एवं शिवसैनिकों से भी इस बारे में राय मांगी थी। उद्धव की अपील पर पूछे गए सवाल के जवाब देने के दौरान संदीप देशपांडे ने कहा कि स्कूली पाठ्यक्रमों में हिंदी की अनिवार्यता विरोध मनसे के लिए युति से ज्यादा महत्वपूर्ण है। युति में हमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं है। फिलहाल, हम हिंदी के विरोध में सड़कों पर उतर गए हैं। शुक्रवार को हुई विभाग अध्यक्षों की बैठक में आंदोलन की रूपरेखा तय की गई है।
क्या करेगी मनसे?
देशपांडे ने कहा कि आगामी सप्ताह में हम पूरे राज्य में पालकों के साथ बैठक करके हस्ताक्षर अभियान चलाएंगे। इसके साथ-साथ विरोध प्रदर्शन एवं जनजागृति मुहिम भी चलाई जाएगी। उन्होंने कहा कि गुजरात में हिंदी भाषा की सख्ती नहीं है। उत्तर प्रदेश में कौन सी तीसरी भाषा पढ़ाई जाएगी, मुख्यमंत्री इसका उत्तर नहीं देते हैं। बल्कि वह कह रहे हैं कि राष्ट्रीय नीति में लिखा गया है, जो कि सरासर झूठ है। इसलिए हिंदी की अनिवार्यता के पीछे सरकार की जो मंशा छिपी है, उसे नाकाम करना हमारे लिए ज्यादा जरूरी है।
उद्धव पर निशाना
यूबीटी से मनसे के गठबंधन के मुद्दे पर देशपांडे ने कहा कि यूबीटी के सिर्फ 20 विधायक जीते तो उन्हें मनसे से गठबंधन की याद आई। जब 60 विधायक जीते थे और 2014 में जब हमने प्रयास किया था तब ये आत्मीयता क्यों नहीं जागी थी? आज बुरा वक्त आया, शिवसेना टूट गई तो वह पार्टी के पदाधिकारियों एवं शिवसैनिकों से राय मांग रहे हैं। लेकिन 2019 में शरद पवार के साथ जाने से पहले उन्होंने राय क्यों नहीं मांगी थी? विधायकों, नगर सेवकों की बैठक क्यों नहीं बुलाई थी, ऐसे सवाल उठाते हुए देशपांडे ने उद्धव को फटकारा एवं कहा कि किसी को भी भावनात्मक दबाव की राजनीति नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा युति मंच से भाषण देने से नहीं हो सकती है। उसके लिए ठोस प्रस्ताव के साथ आगे आना चाहिए।