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‘कुतुप’ मुहूर्त में करें अष्टमी श्राद्ध, विधिवत श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मिलती है शांति

Ashtami Shraddha: श्राद्ध पक्ष में अष्टमी तिथि का श्राद्ध पूर्वजों के लिए किया जाता है। कुतुप मुहुर्त में यह श्राद्ध करने से इसका फल अवश्य मिलता है। यहां जाने इसकी विधि, सामग्री, पूजा और मुहुर्त।

  • By प्रिया जैस
Updated On: Sep 14, 2025 | 01:01 PM

कुतुप मुहूर्त में करें अष्टमी श्राद्ध (सौजन्य-नवभारत)

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Dharma News: श्राद्ध पक्ष में अष्टमी तिथि का श्राद्ध उन पूर्वजों के लिए किया जाता है, जिनका निधन अष्टमी तिथि को हुआ था। इस दिन विधिवत श्राद्ध कर्म करने से पितरों को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद परिवार पर बना रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुतुप काल के मुहूर्त में किए गए कर्मों का फल सीधे पितरों को मिलता है। इसी कारण श्राद्ध कर्म करने के लिए कुतुप काल को सबसे शुभ और महत्वपूर्ण समय माना जाता है।

श्राद्ध की विधि

सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। एक थाली में जल, काला तिल, कच्चा दूध, जौ और तुलसी मिलाकर रखें। कुश (घास) की अंगूठी बनाकर अनामिका उंगली में पहनें। हाथ में जल, सुपारी, सिक्का और फूल लेकर तर्पण का संकल्प लें। फिर पितरों के नाम से तर्पण करें। चावल, जौ, और काले तिल को मिलाकर पिंड बनाएं।

इन पिंडों को पितरों को अर्पित करें और उनसे अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगें। श्राद्ध के भोजन में से पांच हिस्से अलग निकालें और उन्हें गाय, श्वान, कौवा, चींटी और देवता यानी पंचबलि के लिए रखें। पंचबलि के बाद ब्राह्मणों को आदरपूर्वक भोजन कराएं। अष्टमी श्राद्ध में आठ ब्राह्मणों को भोजन कराने का विशेष विधान है।

ऐसे करें अष्टमी तिथि का श्राद्ध

श्राद्ध की तैयारी – स्थान और समय : श्राद्ध कर्म हमेशा दोपहर के समय यानी कुतुप मुहूर्त में ही किया जाता है, क्योंकि यह समय पितरों के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।

सामग्री : श्राद्ध के लिए आवश्यक सामग्री में गंगाजल, तिल, जौ, चावल, दूध, घी, शहद, खीर, पूरी, हलवा, और पितरों को पसंद आने वाले अन्य सात्विक व्यंजन शामिल होते हैं।

पवित्रता : श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को उस दिन पूरी तरह से शुद्ध और पवित्र रहना चाहिए। श्राद्ध से एक दिन पहले से ही सात्विक भोजन करना शुरू कर दें।

अष्टमी श्राद्ध की सावधानियां

मांस, मछली, अंडा, लहसुन, प्याज, मद्य आदि का त्याग करें। इन दिनों सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। श्राद्ध कर्म तभी करें जब तिथि व मुहूर्त दोनों ठीक हों। यदि तिथि कट चुकी हो, तो अगले नियमों का पालन करें। इस दिन नए व्यापार, बड़े सौदे, विवाह आदि जैसे मंगल कार्यों से बचें। पितृ तर्पर के समय मन शुद्ध, भाव श्रद्धापूर्ण हो। क्रोध, द्वेष, अहंकार आदि से दूर रहें।

यह भी पढ़ें – जितिया व्रत में आखिर क्यों खाते है दही चूड़ा, जानिए उपवास से जुड़ी इस खास परंपरा के बारे में

पूजा स्थल तथा भोग सामग्री और भोग रखे जाने वाले बर्तन आदि स्वच्छ हों। पूजा के लिए शुभ सामग्री हो। यदि किसी ग्रहण या सूतक स्थिति हो, तो स्थानीय पुरोहित या धर्मगुरु की सलाह लें कि श्राद्ध कर्म किस वक्त करना उपयुक्त होगा।

अष्टमी श्राद्ध तिथि और मुहूर्त

अष्टमी तिथि का प्रारंभ – 14 सितंबर को सुबह 5.04 बजे से
अष्टमी तिथि समाप्त – 15 सितंबर को सुबह 3.06 बजे तक
अपराह्न काल – दोपहर 1.47 से 4.15 बजे तक। अवधि- 2 घंटे 27 मिनट
कुतुप मुहूर्त – दोपहर 12.09 से 12.58 बजे तक। अवधि – 00 घंटे 49 मिनट
रौहिण मुहूर्त – दोपहर 12.58 से 1.47 बजे तक। अवधि- 00 घंटे 49 मिनट

Do ashtami shraddha in kutup muhurta ancestors get peace by performing shraddha karma

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Published On: Sep 14, 2025 | 01:01 PM

Topics:  

  • Gondia News
  • Pitru Paksha
  • Shubh Muhurat

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