प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोशल मीडिया )
Gadchiroli Municipal Council Elections: गड़चिरोली लगभग 7 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद नगर परिषदों के चुनाव संपन्न हुए हैं और स्थानीय स्वशासन की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पुनः गति मिली है। इस अवधि के दौरान नगर परिषदों पर प्रशासकों का शासन रहा।
परिणामस्वरूप शहरों की मूलभूत नागरिक समस्याओं की ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जा सका। सड़कों की बदहाल स्थिति, नालियों की अव्यवस्था, पेयजल संकट, बढ़ता अतिक्रमण, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी तथा नगर परिषद संचालित विद्यालयों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव जैसी समस्याएं और अधिक गंभीर होती चली गईं।
प्रशासनिक शासन के दौर में निर्णय प्रक्रिया सीमित रही। निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के अभाव में नागरिकों की शिकायतें प्रभावी ढंग से सामने नहीं आ सकीं, जिससे कई विकास कार्य फाइलों में ही अटके रह गए। योजनाओं के क्रियान्वयन में निरंतरता न होने का सीधा असर नगरों के समग्र विकास पर पड़ा।
अब चुनाव प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, आगामी सप्ताह में नवनिर्वाचित नगराध्यक्ष और पार्षद अपना कार्यभार संभालेंगे। किंतु उनके समक्ष पिछले 7 वर्षों की लंबित समस्याओं का बड़ा बैकलॉग मौजूद रहेगा। केवल नई योजनाएं बनाना ही नहीं, बल्कि रुके हुए कार्यों को गति देना, नागरिकों का विश्वास पुनः अर्जित करना और प्रशासन को जवाबदेह बनाना उनकी प्रमुख जिम्मेदारी होगी।
विशेष रूप से यह भी देखा गया है कि बीते 7 वर्षों में नगर परिषदों में जनप्रतिनिधियों की अनुपस्थिति के कारण कुछ स्थानों पर प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों में मनमाने कार्यशैली की प्रवृत्ति बढ़ी। अब जनप्रतिनिधियों की वापसी से इस पर अंकुश लगने की उम्मीद नागरिकों द्वारा जताई जा रही है।
नप केवल एक प्रशासनिक इकाई नहीं, बल्कि जनता की समस्याओं की आवाज है। इस भावना को फिर से स्थापित करना आवश्यक होगा। आने वाले समय में यह स्पष्ट होगा कि नवनिर्वाचित प्रतिनिधि विकास को प्राथमिकता देते हैं या फिर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तक ही सीमित रहते हैं। 7 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद नगरवासियों को अब केवल आश्वासन नहीं, बल्कि ठोस और धरातल पर दिखने वाले कार्यों की अपेक्षा है।
जिले की तीनों नगर परिषद में एक बार फिर भाजपा की सत्ता स्थापित हुई है। हालांकि सत्ता वही रही, लेकिन अध्यक्ष पद सहित कई नए पदाधिकारियों को अवसर मिला है। ऐसे में शहर की पुरानी और जटिल समस्याओं को लेकर जनता की उम्मीदें भी बढ़ गई हैं।
पिछले कार्यकाल में गडचिरोली शहर में भाजपा के पदाधिकारियों द्वारा लगभग सौ करोड़ रुपये की लागत से भूमिगत नाली निर्माण का कार्य शुरू किया गया था। कार्यकाल समाप्त हो गया, लेकिन आज भी यह काम अधूरा है।
इस कारण नवनिर्वाचित अध्यक्ष के सामने यह सवाल प्रमुखता से उठाया जाएगा कि इस योजना पर हुए भारी खर्च के बावजूद काम क्यों पूरा नहीं हो सका। इसके अलावा वार्ड-वार्ड में विकसित किए गए उद्यानों की बदहाल स्थिति, पेयजल आपूर्ति की जर्जर पाइपलाइन तथा अन्य बुनियादी सुविधाओं की समस्याएं भी गंभीर बनी हुई है।
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इन सभी मुद्दों का समाधान करना नई नगराध्यक्ष के लिए बड़ी चुनौती होगा। राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर भाजपा की सरकार होने के कारण गड़चिरोली शहर का चेहरा मोहरा बदलने का अवसर नवनिर्वाचित अध्यक्ष को मिला है। अब देखना यह होगा कि वे इन लंबित समस्याओं को कितनी प्राथमिकता देकर शहर के समग्र विकास की दिशा में ठोस कदम उठाती है,