नगर परिषद कार्यालय भद्रावती (सौजन्य-नवभारत)
Chandrapur News: भद्रावती नगर पालिका की राजनीति लंबे समय से शिवसेना के एकछत्र राज में रही है। नगराध्यक्ष की कुर्सी से लेकर पालिका परिषद की कार्यशैली तक शिवसेना और विशेषकर धानोरकर परिवार की पकड़ इतनी मजबूत रही कि विपक्ष के लिए यहां पैर जमाना मुश्किल था। यह परिवार जिस तरह एकजुट होकर राजनीति करता रहा, उसी का नतीजा था कि सेवा और सत्ता दोनों पर शिवसेना का ही कब्जा रहा। लेकिन अब समीकरण बदल चुके हैं।
धानोरकर परिवार की एकजुटता टूट गई है। परिवार के कुछ सदस्य कांग्रेस में चले गए, कुछ वंचित बहुजन आघाड़ी के साथ खड़े हुए और अब हाल ही में भाजपा का दामन भी थाम लिया गया। यह बिखराव भद्रावती की राजनीति में बड़ा उलटफेर करने की क्षमता रखता है। शिवसेना के अंदरूनी मतभेदों ने विरोधियों को मौका दे दिया है और अब पालिका चुनाव में कई चेहरे दावेदारी के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं।
भद्रावती में कांग्रेस की पकड़ लंबे समय से कमजोर रही है। लोकसभा और विधानसभा स्तर पर भी यहां कांग्रेस को निर्णायक बढ़त नहीं मिल सकी। स्थानीय स्तर पर कांग्रेस की पकड़ सीमित होने के कारण नगर पालिका चुनाव में भी उसका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा। हालांकि इस बार शिवसेना के भीतर फूट और भाजपा में शामिल हुए पुराने नेताओं की वजह से कांग्रेस उम्मीद लगाए बैठी है कि विरोधी वोटों के बंटवारे का फायदा उसे मिल सकता है।
बीते कुछ वर्षों में भद्रावती में भाजपा का आधार धीरे-धीरे मजबूत हुआ है। खासकर युवाओं और मध्यम वर्ग के बीच पार्टी की पकड़ बढ़ रही है। अब जब शिवसेना से जुड़े कुछ वरिष्ठ नेता भाजपा में आ गए हैं, तब चुनावी तस्वीर और दिलचस्प हो गई है। भाजपा अपने नए चेहरों को सामने लाकर जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि वह नगर पालिका में बदलाव लाने का संकल्प लेकर आई है।
शिवसेना के लिए सबसे बड़ी चुनौती खोई हुई एकता को वापस पाना है। अब जबकि पार्टी दो गुटों में बंट चुकी है, कार्यकर्ताओं में भ्रम और असंतोष की स्थिति भी बनी हुई है। भद्रावती की जनता के सामने शिवसेना के पुराने नगर अध्यक्ष का चेहरा जरूर एक भरोसे का प्रतीक है, लेकिन गुटबाजी की वजह से लोगों के मन में यह सवाल भी है कि क्या पार्टी पहले जैसी मजबूती से सत्ता संभाल पाएगी?
इस बार का चुनाव केवल दलों की टक्कर नहीं होगा, बल्कि नए और पुराने चेहरों की लोकप्रियता का भी इम्तिहान होगा। नगर पालिका का नेतृत्व अब तक कुछ गिने-चुने परिवारों के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है, मगर हाल के घटनाक्रमों के बाद आम जनता भी बदलाव की उम्मीद कर रही है। यदि किसी पार्टी ने साफ-सुथरा और सेवाभावी नया चेहरा सामने लाया, तो यह जनता को आकर्षित कर सकता है।
भद्रावती में नगर अध्यक्ष और सत्ता का चेहरा बदलने की पूरी संभावना है। पुराने समीकरण टूट चुके हैं और नए गठबंधन बन रहे हैं। कांग्रेस के कमजोर रहने के बावजूद शिवसेना की आंतरिक कलह और भाजपा की बढ़ती सक्रियता ने चुनाव को पूरी तरह रोमांचक बना दिया है। नगर पालिका चुनाव अब कुछ ही महीनों की दूरी पर है।
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उत्सुकता इस बात की है कि क्या इस बार भी पुराने नगर अध्यक्ष पर भरोसा जताया जाएगा या फिर कोई नया चेहरा नेतृत्व की कमान संभालेगा। टूटे कुनबे, बदले दावे और बढ़ती राजनीतिक सक्रियता ने भद्रावती की राजनीति में हलचल मचा दी है। अब देखना यह होगा कि यह हलचल किसे नगर अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचाती है और किसके लिए हार का कारण बनती है।