जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक सहित 13 अधिकारियों को न्यायालय का नोटिस। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
चंद्रपुर: संजय गांधी निराधार योजना और श्रावणबाल योजना के तहत जिवती तहसील में मृत लाभार्थियों के नाम पर वित्तीय अनियमितताओं का गंभीर मामला सामने आया है। यह कथित घोटाला 1 अप्रैल 2017 से 31 मार्च 2024 की अवधि के दौरान हुआ। इस मामले में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा लापरवाही बरते जाने का आरोप लगाते हुए सामाजिक कार्यकर्ता विनोद खोब्रागड़े ने जिला एवं सत्र न्यायालय में याचिका दायर की थी।
याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने मंगलवार, 27 मई को चंद्रपुर के जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक सहित कुल 13 अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस जारी होते ही प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मच गया है। मामले की अगली सुनवाई 10 जून 2025 को निर्धारित की गई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, संजय गांधी निराधार योजना और श्रावणबाल योजना के तहत मृत लाभार्थियों के नाम पर सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया। आरोप है कि बनावटी हस्ताक्षर वाले पत्रों के आधार पर लाभार्थियों के खातों से पैसे बैंकों से निकाले गए। इस मामले का खुलासा होने के बाद, जिलाधिकारी विनय गौड़ा के आदेश पर तहसीलदार रूपाली मोगरकर ने जिवती पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी।
मामले की जांच में यह बात सामने आई कि मृत कंप्यूटर ऑपरेटर विलास येलनारे और कुछ अन्य लोगों ने यह धोखाधड़ी की थी, जिनके विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध किया गया है। याचिकाकर्ता विनोद खोब्रागड़े की याचिका पर संज्ञान लेते हुए जिला एवं सत्र न्यायालय ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 438 के अंतर्गत कार्रवाई करते हुए 13 वरिष्ठ अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। इन सभी अधिकारियों से न्यायालय द्वारा जवाब मांगा गया है, और उन्हें आगामी सुनवाई में उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है।
तत्कालीन जिलाधिकारी अजय गुल्हाणे, वर्तमान पुलिस अधीक्षक मुम्मका सुदर्शन, तत्कालीन सहायक जिलाधिकारी शांतनु गोयल, राजुरा के उपविभागीय अधिकारी रवींद्र माने, तत्कालीन तहसीलदार (जिवती) प्रशांत बेडसे, अधिकारी प्रवीण चिडे, अधिकारी अविनाश शेंबटवाड, तहसीलदार रूपाली मोगरकर, वरिष्ठ लिपिक पांडुरंग नंदुरकर, उपविभागीय पुलिस अधिकारी (गडचांदूर) रवींद्र जाधव, तत्कालीन थाना प्रभारी कांचन पांडे, अधिकारी कुमार मंगलम बिरला, अधिकारी मनोहर तालेवार
इस मामले में उच्च पदस्थ अधिकारियों के नाम सामने आने से प्रशासनिक महकमे में बेचैनी फैल गई है। यह मामला यह भी उजागर करता है कि सरकारी कल्याणकारी योजनाओं में कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार किस हद तक फैला हुआ है।