भद्रावती नगर पालिका (फोटो नवभारत)
Bhadravati Municipal Elections: चंद्रपुर जिले की भद्रावती नगर पालिका में आरक्षण की घोषणा के बाद भद्रावती की राजनीति में तेजी से उठापटक देखने को मिल रही है। शहर के कई पूर्व नगराध्यक्ष और नगरसेवक अब अपने पुराने दलों का दामन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भाजपा को इन नेताओं के अनुभव और लोकप्रियता का लाभ मिलेगा, या फिर भद्रावती जनता के दिलों दिमाग में कुछ और ही छुपा है यह तो आने वाला समय बताएगा।
भद्रावती नगर पालिका में इस बार अध्यक्ष पद ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित किया गया है, जिसमें महिला या पुरुष, दोनों चुनाव लड़ सकते हैं। इस वजह से सभी दलों में सशक्त ओबीसी उम्मीदवार की खोज जोरों पर है। भाजपा, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना के दोनों गुटों के पदाधिकारी लगातार बैठकों में रणनीति तय कर रहे हैं।
भाजपा की ओर से शहर के कुछ पूर्व नगराध्यक्षों और अनुभवी नगरसेवकों के पार्टी में प्रवेश को मजबूती का संकेत माना जा रहा है। पुराने कार्यकर्ताओं और नए समर्थकों का मेल भाजपा को नगर पालिका में स्पष्ट बहुमत की ओर ले जा सकता है।
वहीं विपक्षी दलों का मत है कि जनता अब बदलाव चाहती है और बार-बार वही चेहरे देखने से ऊब चुकी है। भद्रावती में पिछले कुछ वर्षों में नगर पालिका के विकास कार्यों पर जनता की मिली-जुली प्रतिक्रिया रही है।
कुछ वार्डों में विकास कार्यों की सराहना हुई है, जबकि कुछ क्षेत्रों में नागरिकों ने मूलभूत सुविधाओं की कमी पर नाराजगी जताई है। ऐसे में यह चुनाव न केवल पार्टियों के लिए, बल्कि पुराने नेताओं की लोकप्रियता की भी परीक्षा बन गया है।
कांग्रेस में भी नए चेहरों को आगे लाने की चर्चा जोरों पर है। पार्टी की स्थानीय इकाई शहर के शिक्षित और सामाजिक रूप से सक्रिय उम्मीदवारों पर दांव लगाने की तैयारी में है। वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना भी अपने नए महिला या पुरुष उम्मीदवारों को आगे बढ़ाने की योजना बना रही हैं, ताकि महिला सशक्तिकरण की छवि को मजबूत किया जा सके।
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यदि भाजपा ने पुराने नेताओं पर ही भरोसा जताया तो जनता उन्हें दोबारा मौका देगी या नहीं, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। वहीं अगर बाकी दल अपने किसी नए, सक्रिय और स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवार को मौका देते हैं, तो उसका फायदा उसे मिल सकता है।
भद्रावती की जनता अब विकास, पारदर्शिता और जवाबदेही चाहती है। ऐसे में आने वाला चुनाव यह तय करेगा कि पुराने नगराध्यक्षों का अनुभव भारी पड़ता है या नए चेहरों की उम्मीदें शहर की बागडोर संभालती हैं।