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बुलढाणा: महाराष्ट्र की गद्दी पर आसीन होने के लिए चुनावी महायुद्ध शुरू होने वाला है। चुनाव आयोग ने अभी भले ही अभी भीष्म पितामह की तरह शंखनाद नहीं किया है। लेकिन महारथी पूरी तरह से तैयार है। उन्हें बस इंतजार है कि कब चुनाव आयोग बिगुल फूंके और वह सियासी समरभूमि में कूद पड़ें। इस महायुद्ध में किस मोर्चे पर किसकी जय या पराजय होगी हम भी संजय की तरह इसके आकलन में लगे हुए हैं।
चुनाव से पहले हमारी कोशिश है कि हम हर एक मोर्च का विश्लेषण आप तक पहुंचा सकें। इस कड़ी में हम एक-एक सीट पर अब तक कैसा वोटिंग पैटर्न रहा। किसे कहां और कब जीत मिली? मुद्दे क्या रहे और इस बार क्या संभावनाएं हैं। जैसी बातों का बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं। आज हम बात करने जा रहे हैं बुलढाणा विधानसभा सीट की। यहां 1952 से 1990 तक कांग्रेस का एकछत्र राज रहा 1990 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने कांग्रेस के जीत के रथ पर लगाम लगा दी। 1990 के बाद हुए 6 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस केवल दो बाद ही यहां से जीत कर पाई हैं।
बुलढाणा विधानसभा निवार्चन क्षेत्र बुलढाणा जिले में स्थित सात निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह बुलढाणा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है। 2019 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक यहां 3 लाख 6 हजार 272 मतदाता हैं। इस सीट पर ओबीसी मतदाताओं का दबदबा माना जाता हैं। बुलढाणा विधानसभा सीट पर अनुसूचित जाती के मतदाताओं की संख्या लगभाग 56,161 है जो 18.25% के आसपास होती हैं। साथ ही 17,541 आदिवासी वोटर्स हैं। वहीं मुस्लिम मतदाताओं की बात करें तो यहां उनकी संख्या लगभग 49,237 है जो कि 16 फीसदी के आसपास है।
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1951 में अस्तित्व में आई बुलढाणा विधानसभा सीट पर 1952 से 1985 तक यहां कांग्रेस ने एकछत्र राज किया। 1990 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना के राजेंद्र गोड ने पहली बार कांग्रेस के 38 साल के राज काे खत्म करते हुए जीत दर्ज की। 1995 में शिवसेना के विजयराज शिंदे ने यहां से चुनाव जीता लेकिन 1999 में कांग्रेस ने एक बार फिर वापसी की। 2004 में कांग्रेस को एक बार फिर विजयराज शिंदे के हाथों शिकस्त मिली। 2014 में हर्षवर्द्धन सपकाल ने यहां एक फिर कांग्रेस का परचम लहराया। वहीं 2019 में शिवसेना के संजय गायकवाड़ ने एक बार फिर कांग्रेस को हार का स्वाद चखाया।
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बुलढाणा सीट ने अब तक कुल 15 विधानसभा चुनाव देखे हैं। इन चुनावों के वोटिंग पैटर्न और जीत हार का विश्लेषण करें तो एक बात यह निकलकर आती है कि यहां कांग्रेस और शिवसेना में ही हमेशा सीधी फाइट देखी गई है। 1990 से शिवसेना यहां लगातार दो बार जीतती हैं। हालांकि शिवसेना में हुई दो फाड़ के बाद अब इसका फायदा किसे होगा यह देखने वाली बात होगी।