संकट में जिप शालाओं का अस्तित्व। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
भंडारा: आधुनिक समय में जिला परिषद प्राथमिक स्कुलों का अस्तित्व संकट में है तथा विद्यालय में छात्रों की संख्या दिन-ब-दिन कम होती जा रही है। सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों, शिक्षकों के बच्चे निजी विद्यालयों में प्रवेश लेते हैं। इसके बाद स्थानीय स्तर पर देखने को मिल रहा है कि गांवों में गरीबों के बच्चे भी निजी स्कूलों में प्रवेश लेने की जिद कर रहे हैं।
इसका फायदा उठाकर निजी स्कूलों के शिक्षक प्रवेश के लिए छात्रों के घर-घर जा रहे हैं। दूसरी ओर जिला परिषद के विद्यालयों के माध्यम से विद्यार्थियों के लिए विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन होते हुए भी देखने में आ रहा है कि जिला परिषद के स्कुलों वीरान होते जा रहे हैं।
सरकार द्वारा गरीबों के बच्चों के लिए शुरू किए गए जिला परिषद प्राथमिक स्कुल बंद हो रहे हैं। कई स्कूल बंद होने के कगार पर हैं। कई स्कूल में एक शिक्षक हैं और छात्रसंख्या के अभाव में बंद होने की कगार पर हैं। ऐसा ही हाल गांवों के जिला परिषद प्राथमिक विद्यालयों का हो गया है। जिससे जिला परिषद प्राथमिक विद्यालयों का अस्तित्व खतरे में है और संभावना है कि कार्यरत शिक्षक और प्रशिक्षित शिक्षक अपनी नौकरी खो सकते हैं। बुनियादी शिक्षा की शुरुआत जिला परिषद के स्कूल से होती है और वही स्कूल आज छात्र संख्या के अभाव में रसातल में जा रहा है।
इसका मुख्य कारण यह है कि सरकारी अधिकारी व कर्मचारी अपने बच्चों को जिला परिषद के विद्यालयों में प्रवेश न देकर निजी विद्यालयों में प्रवेश दिलाते हैं। जिससे अन्य अभिभावकों का भी रुझान निजी कान्वेंट में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित हो रहा है। परिणामस्वरुप जिप के स्कूल बंद होने के कगार पर हैं। क्योंकि छात्र जिप के स्कूलों में शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
सामान्य परिवारों के लड़के-लड़कियों को निजी स्कूलों में पढ़ाई के लिए हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। जबकि जिप प्राथमिक स्कुल मुफ्त उच्च स्तरीय शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। आज जिला परिषद स्कुल में कमी आ रही है क्योंकि निजी स्कुलों में शिक्षा के उच्च स्तर हैं। सुविधाएं भरपूर हैं लेकिन मिजाज वही है।
निजी स्कुलों में शिक्षा की जो व्यवस्था होती है वही शिक्षा की व्यवस्था जिला परिषद प्राथमिक स्कुलों में भी की जा रही है। जिप के विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, विद्यालय भवन, शौचालय, हाथ धोने, विशाल खेल का मैदान, सुसज्जित कक्षा-कक्ष, रंगरोगन, बैठने की व्यवस्था, आधुनिक शिक्षण विधियों का उपयोग उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन कान्वेंट संस्कृति के बढ़ने के साथ ही यह महसूस होने लगा है कि माता-पिता का मिजाज नहीं बदल रहा है।
यदि सरकार राज्य के सभी जिप स्कुलों में कक्षा पहली से चौथी तक की शिक्षा सर्वसामान्य परिवार से लेकर बड़े परिवार के बच्चों के लिए बंधनकारक कर सरकारी कर्मचारियों, वरिष्ठ अधिकारियों, स्थानीय स्तर के जनप्रतिनिधियों, विधायकों, सांसदों, मंत्रियों आदि के बच्चों को जिप शाला में शिक्षा लेने बंधनकारक कर देती है तो जिले की जिप शालाओं के भी अच्छे दिन आएंगे, ऐसी प्रतिक्रिया सर्वसामान्य जनता द्वारा व्यक्त की जा रही है।