मारबत यात्रा (फोटो नवभारत)
Bhandara Marbat Festival: भंडारा में बैलपोला के दूसरे दिन यानी पाडवा को मारबत और बडगा निकालने की परंपरा पिछले 118 वर्षों से निभाई जा रही है। इस परंपरा को कायम रखते हुए इस वर्ष भी शुक्रवार, 23 अगस्त को ग्रामीणों ने बड़े उत्साह और उल्लास के साथ यह उत्सव मनाया। गुलाल की बौछार, वाद्यों की गूंज, “इडा पीडा लेकर जा रे मारबत” जैसे नारे और डीजे की धुन पर थिरकते युवक–युवतियों से पूरा गांव खुशियों से झूम उठा। इस उत्सव का आयोजन विवाद मुक्त समिति, ग्रापं और उत्सव समिति के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। गांव के विभिन्न वॉर्डों से करीब 25 से 30 मारबत तैयार कर सुबह शिव मंदिर में लाई गई। वहां टंटयाभिल्ल व दांडपट्टा की पूजा की गई।
इसके बाद मारबतों को गुजरी चौक में ले जाकर सामूहिक पूजन किया गया। सरपंच विजय खोब्रागड़े, विवाद मुक्त समिति अध्यक्ष वसंता हटवार, मोतीराम हुकरे, सतीश सालवे, मनोहर वालवे, ज्ञानेश्वर घुले महाराज आदि की उपस्थिति में मारबत शोभायात्रा की शुरुआत हुई। गांव से निकली इस भव्य शोभायात्रा में मारबत व बडगा की प्रतिमाएं एक के पीछे एक आगे बढ़ रही थीं। पारंपरिक वाद्यों, डीजे की धुन पर नाचते युवा, महिलाओं की उत्स्फूर्त भागीदारी और “घेऊन जा गे मारबत” जैसे घोषणाओं से वातावरण गूंज उठा।
आसपास के गांवों से नागरिकों ने बड़ी संख्या में आकर इस शोभायात्रा का आनंद लिया। विभिन्न वेशभूषा धारण कर कलाकारों ने दर्शकों को आकर्षित किया, जबकि युवाओं ने रंग-बिरंगे परिधानों से उत्सव को खास पहचान दी। शोभायात्रा के बाद सभी मारबतों को गांव के टी-पॉइंट पर ले जाकर परंपरा अनुसार दहन किया गया।
इस अवसर पर सामूहिक भावना प्रकट की गई कि समाज से बुराई, रोग और नकारात्मक शक्तियों का नाश हो। पुलिस प्रशासन ने चाक-चौबंद बंदोबस्त रखकर पूरे कार्यक्रम को शांतिपूर्ण बनाया। शाम को तान्हा पोला और तमाशा कार्यक्रमों ने उत्सव को और भी रंगीन बना दिया।
यह भी पढ़ें:- लाडकी बहिन योजना का सत्यापन बना सिरदर्द, आंगनवाड़ी सेविकाओं का इनकार, आंदोलन की दी चेतावनी
इस वर्ष भी मारबत प्रतिमाओं के माध्यम से विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्यात्मक संदेश दिए गए। महंगाई, भ्रष्टाचार, अत्याचार और घोटालों जैसी बुराइयों का निषेध इन प्रतिमाओं से व्यक्त हुआ। इससे केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का प्रसार भी हुआ। महिला, पुरुष, बच्चे और युवाओं की सहभागिता ने गांव की सामाजिक एकता का सुंदर परिचय कराया।
लोकमान्यता के अनुसार मारबत को पुतना राक्षसी का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि पुतना बालकृष्ण को विष पिलाने आई थी, किंतु कृष्ण ने ही उसका वध कर दिया। इसी प्रसंग के आधार पर मारबत निकालने की परंपरा समाज से बुराईयों के नाश का संदेश देती है। इसलिए ही ग्रामीण हर वर्ष “इडा पिडा घेऊन जागे मारबत” की गूंज के साथ इस परंपरा का पालन करते हैं।